स घा॑ नो दे॒वः स॑वि॒ता स॒हावा सा॑विष॒द्वसु॑पति॒र्वसू॑नि। वि॒श्रय॑माणो अ॒मति॑मुरू॒चीं म॑र्त॒भोज॑न॒मध॑ रासते नः ॥३॥
sa ghā no devaḥ savitā sahāvā sāviṣad vasupatir vasūni | viśrayamāṇo amatim urūcīm martabhojanam adha rāsate naḥ ||
सः। घ॒। नः॒। दे॒वः। स॒वि॒ता। स॒हऽवा॑। आ। सा॒वि॒ष॒त्। वसु॑ऽपतिः। वसू॑नि। वि॒ऽश्रय॑माणः। अ॒मति॑म्। उ॒रू॒चीम्। म॒र्त॒ऽभोज॑नम्। अध॑। रा॒स॒ते॒। नः॒ ॥३॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनर्मनुष्यैः किं कर्तव्यमित्याह ॥
यो वसुपतिरुरूचीममतिं विश्रयमाणो नो मर्तभोजनं रासते स घाश्च सविता सहावा देवो नो वसून्या साविषत् ॥३॥