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ए॒वा नो॑ अग्ने वि॒क्ष्वा द॑शस्य॒ त्वया॑ व॒यं स॑हसाव॒न्नास्क्राः॑। रा॒या यु॒जा स॑ध॒मादो॒ अरि॑ष्टा यू॒यं पा॑त स्व॒स्तिभिः॒ सदा॑ नः ॥५॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

evā no agne vikṣv ā daśasya tvayā vayaṁ sahasāvann āskrāḥ | rāyā yujā sadhamādo ariṣṭā yūyam pāta svastibhiḥ sadā naḥ ||

पद पाठ

ए॒व। नः॒। अ॒ग्ने॒। वि॒क्षु। आ। द॒श॒स्य॒। त्वया॑। व॒यम्। स॒ह॒सा॒ऽव॒न्। आस्क्राः॑। रा॒या। यु॒जा। स॒ध॒ऽमादः॑। अरि॑ष्टाः। यू॒यम्। पा॒त॒। स्व॒स्तिऽभिः॑। सदा॑। नः॒ ॥५॥

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:43» मन्त्र:5 | अष्टक:5» अध्याय:4» वर्ग:10» मन्त्र:5 | मण्डल:7» अनुवाक:3» मन्त्र:5


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्य क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (सहसावन्) बहुबलयुक्त (अग्ने) विद्वान् ! आप (विक्षु) प्रजाजनों में (नः) हम लोगों को धन (दशस्य) देओ जिससे (त्वया) तुम्हारे साथ (युजा) युक्त (वयम्) हम लोग (राया) धन से (सधमादः) तुल्य स्थानवाले (आस्क्राः) सब ओर से बुलावें और (अरिष्टाः) अविनष्ट हों (यूयम्) तुम (स्वस्तिभिः) सुखों से (नः) हम लोगों की (सदा) सर्वदा (पात) रक्षा करो (एव) उन्हीं की हम लोग भी रक्षा करें ॥५॥
भावार्थभाषाः - हे विद्वानो ! तुम हम को विद्या देओ, जिससे हम लोग प्रजाजनों में उत्तम धन आदि पाकर तुम्हारी सदैव रक्षा करें ॥५॥ इस सूक्त में विश्वेदेवों के गुण और कामों का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की इससे पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह तयालीसवाँ सूक्त और दशवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्याः किं कुर्युरित्याह ॥

अन्वय:

हे सहसावन्नग्ने ! त्वं विक्षु नो धनं दशस्य यतस्त्वया सह युजा वयं राया सधमाद आस्क्रा अरिष्टास्स्याम यूयं स्वस्तिभिर्नः सदा पात तानेव वयमपि रक्षेमहि ॥५॥

पदार्थान्वयभाषाः - (एवा) अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (नः) अस्मान् (अग्ने) विद्वन् (विक्षु) प्रजासु (आ) (दशस्य) देहि (त्वया) [त्वया] सह (वयम्) (सहसावन्) बहुबलयुक्त (आस्क्राः) समन्तादाहूताः (राया) धनेन (युजा) युक्तेन (सधमादः) समानस्थानाः (अरिष्टाः) अहिंसिताः (यूयम्) (पात) (स्वस्तिभिः) (सदा) (नः) अस्मान् ॥५॥
भावार्थभाषाः - हे विद्वांसो ! यूयमस्मान् विद्याः प्रदत्त येन वयं प्रजासूत्तमानि धनादीनि प्राप्य युष्मान् सततं रक्षेम ॥५॥ अत्र विश्वेदेवगुणकृत्यवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह संगतिर्वेद्या ॥ इति त्रिचत्वारिंशत्तमं सूक्तं दशमो वर्गश्च समाप्तः ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - भावार्थ ः हे विद्वानांनो! तुम्ही आम्हाला विद्या द्या, ज्यामुळे आम्ही प्रजेकडून उत्तम धन इत्यादी प्राप्त करून तुमचे सदैव रक्षण करू. ॥ ५ ॥