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अश्वा॑वती॒र्गोम॑तीर्न उ॒षासो॑ वी॒रव॑तीः॒ सद॑मुच्छन्तु भ॒द्राः। घृ॒तं दुहा॑ना वि॒श्वतः॒ प्रपी॑ता यू॒यं पा॑त स्व॒स्तिभिः॒ सदा॑ नः ॥७॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

aśvāvatīr gomatīr na uṣāso vīravatīḥ sadam ucchantu bhadrāḥ | ghṛtaṁ duhānā viśvataḥ prapītā yūyam pāta svastibhiḥ sadā naḥ ||

पद पाठ

अश्व॑ऽवतीः। गोऽम॑तीः। नः॒। उ॒षसः॑। वी॒रऽव॑तीः। सद॑म्। उ॒च्छ॒न्तु॒। भ॒द्राः। घृ॒तम्। दुहा॑नाः। वि॒श्वतः॑। प्रऽपी॑ताः। यू॒यम्। पा॒त॒। स्व॒स्तिऽभिः॑। सदा॑। नः॒ ॥७॥

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:41» मन्त्र:7 | अष्टक:5» अध्याय:4» वर्ग:8» मन्त्र:7 | मण्डल:7» अनुवाक:3» मन्त्र:7


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर विदुषी स्त्री क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे पढ़ाने और उपदेश करनेवाली पण्डिता स्त्रियो ! तुम (उषसः) प्रभात वेला सी शोभती हुई (अश्वावतीः) जिन के समीप बड़े-बड़े पदार्थ विद्यमान (गोमतीः) वा किरणें विद्यमान (वीरवतीः) वा वीर विद्यमान (भद्राः) जो कल्याण करने (प्रपीताः) उत्तमता से बढ़ाने और (विश्वतः) सब ओर से (घृतम्) जल को (दुहानाः) पूरा करती हुईं आप (नः) हमारे (सदम्) स्थान को (उच्छन्तु) सेवो वह (यूयम्) तुम (स्वस्तिभिः) सुखों से (नः) हम लोगों की (सदा) सर्वदैव (पात) रक्षा कीजिये ॥७॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है । जैसे प्रभात वेला सब निद्रा में ठहरे हुए मरे हुए जैसों को चैतन्य करा कर्मों में युक्त कराती हैं, वैसे ही होती हुईं विदुषी स्त्रियाँ सब अविद्या निद्रास्थ स्त्रियों को पढ़ाने और उपदेश करने से अच्छे काम में प्रवृत्त करावें ॥७॥ इस सूक्त में मनुष्यों की दिनचर्य्या का प्रतिपादन होने से इस सूक्त के अर्थ की इससे पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह इकतालीसवाँ सूक्त और आठवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्विदुष्यः स्त्रियः किं कुर्युरित्याह ॥

अन्वय:

हे अध्यापकोपदेशिका विदुष्यस्त्रिय ! उषास इवाश्वावतीर्गोमतीर्वीरवतीर्भद्राः प्रपीता विश्वतो घृतं दुहाना भवत्यो नः सदमुच्छन्तु यूयं स्वस्तिभिर्नस्सदा पात ॥७॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अश्वावतीः) अश्वा महान्तः पदार्था विद्यन्ते यासु ताः (गोमतीः) गावो धेनवः किरणा विद्यन्ते यासु ताः (नः) अस्माकम् (उषसः) प्रभातवेला इव शोभमानाः। अत्र वा छन्दसीत्युपधादीर्घः। (वीरवतीः) वीरा विद्यन्ते यासु ताः (सदम्) सीदन्ति यस्मिन् तम् (उच्छन्तु) सेवन्ताम् (भद्राः) कल्याणकर्यः (घृतम्) उदकम् (दुहानाः) प्रपूरयन्त्यः (विश्वतः) (प्रपीताः) प्रकर्षेण पीता वर्धयित्र्यः (यूयम्) (पात) (स्वस्तिभिः) (सदा) (नः) ॥७॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथोषसस्सर्वान् निद्रास्थान् मृतककल्पान् चेतयित्वा कर्मसु प्रवर्तयन्ति तथैव सत्यो विदुष्यः स्त्रियस्सर्वाः स्त्रियोऽविद्यानिद्रास्था अध्यापनोपदेशाभ्यां चेतयित्वा सत्कर्मसु प्रेरयन्त्विति ॥७॥ अत्र मनुष्याणां दिनचर्याप्रतिपादनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इत्येकचत्वारिंशत्तमं सूक्तमष्टमो वर्गश्च समाप्तः ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. प्रभातवेळही झोपेत असलेल्या व जीवन्मृत असणाऱ्यांमध्ये चैतन्य निर्माण करून कार्यात प्रवृत्त करते तसेच विदुषी स्त्रियांनी सर्व अविद्यायुक्त स्त्रियांना अध्यापन व उपदेश करून चांगल्या कार्यात प्रवृत्त करावे. ॥ ७ ॥