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उदु॒ ष्य दे॒वः स॑वि॒ता य॑याम हिर॒ण्ययी॑म॒मतिं॒ यामशि॑श्रेत्। नू॒नं भगो॒ हव्यो॒ मानु॑षेभि॒र्वि यो रत्ना॑ पुरू॒वसु॒र्दधा॑ति ॥१॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ud u ṣya devaḥ savitā yayāma hiraṇyayīm amatiṁ yām aśiśret | nūnam bhago havyo mānuṣebhir vi yo ratnā purūvasur dadhāti ||

पद पाठ

उत्। ऊँ॒ इति॑। स्यः। दे॒वः। स॒वि॒ता। य॒या॒म॒। हि॒र॒ण्ययी॑म्। अ॒मति॑म्। याम्। अशि॑श्रेत्। नू॒नम्। भगः॑। हव्यः॑। मानु॑षेभिः। वि। यः। रत्ना॑। पु॒रु॒ऽवसुः॑। दधा॑ति ॥१॥

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:38» मन्त्र:1 | अष्टक:5» अध्याय:4» वर्ग:5» मन्त्र:1 | मण्डल:7» अनुवाक:3» मन्त्र:1


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब अड़तीसवें सूक्त का आरम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में मनुष्यों को किसकी उपासना करनी चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) जो (भगः) सेवन करने योग्य सकलैश्वर्ययुक्त (पुरूवसुः) बहुत धनोंवाला (सविता) सकलैश्वर्य देने हारा (देवः) दाता ईश्वर (मानुषेभिः) मनुष्यों से (नूनम्) निश्चय से (हव्यः) स्तुति करने योग्य है जो हम लोगों के कामों को (वि, दधाति) सिद्ध करता है (स्यः) वह जगदीश्वर (उ) ही (याम्) जिस (हिरण्ययीम्) हिरण्यादि रत्नोंवाली (अमतिम्) सुन्दर रूपवती लक्ष्मी को तथा (रत्ना) रमण करने योग्य धनों को हमारे लिये (अशिश्रेत्) आश्रय करता है, उसका हम लोग (उत्, ययाम) उत्तम नियम पालें ॥१॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य परमेश्वर की उपासना करते हैं, वे श्रेष्ठ लक्ष्मी को प्राप्त होते हैं ॥१॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ मनुष्यैः क उपासनीय इत्याह ॥

अन्वय:

यो भगो पुरूवसुः सविता देव ईश्वरो मानुषेभिर्नूनं हव्योऽस्ति योऽस्माकं कामान् विदधाति स्य उ यां हिरण्ययीममतिं रत्ना चास्मदर्थमशिश्रेत् तं वयमुद्ययाम ॥१॥

पदार्थान्वयभाषाः - (उत्) (उ) (स्यः) स पूर्वोक्तः जगदीश्वरः (देवः) दाता (सविता) सकलैश्वर्यप्रदः (ययाम) प्राप्नुयाम (हिरण्ययीम्) हिरण्यादिप्रचुराम् (अमतिम्) सुरूपां श्रियम् (याम्) (अशिश्रेत्) आश्रयेत् (नूनम्) निश्चितम् (भगः) भजनीयः सकलैश्वर्ययुक्तः (हव्यः) स्तोतुमर्हः (मानुषेभिः) मनुष्यैः (वि) विशेषेण (यः) (रत्ना) रमणीयानि धनानि (पुरूवसुः) पुरूणि बहूनि वसूनि धनानि यस्य स। अत्र संहितायामित्याद्यपदस्य दैर्घ्यम्। (दधाति) निष्पादयति ॥१॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्याः परमेश्वरमुपासते श्रेष्ठां श्रियं लभन्ते ॥१॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)

या सूक्तात सविता, ऐश्वर्य, विद्वान व विदुषींचे गुण वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्वसूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

भावार्थभाषाः - जी माणसे परमेश्वराची उपासना करतात ती श्रेष्ठ धन प्राप्त करतात. ॥ १ ॥