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आ वात॑स्य॒ ध्रज॑तो रन्त इ॒त्या अपी॑पयन्त धे॒नवो॒ न सूदाः॑। म॒हो दि॒वः सद॑ने॒ जाय॑मा॒नोऽचि॑क्रदद्वृष॒भः सस्मि॒न्नूध॑न् ॥३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ā vātasya dhrajato ranta ityā apīpayanta dhenavo na sūdāḥ | maho divaḥ sadane jāyamāno cikradad vṛṣabhaḥ sasminn ūdhan ||

पद पाठ

आ वात॑स्य। ध्रज॑तः। र॒न्ते॒। इ॒त्याः। अपी॑पयन्त। धे॒नवः॑। न। सूदाः॑। म॒हः। दि॒वः। सद॑ने। जाय॑मानः। अचि॑क्रदत्। वृ॒ष॒भः। सस्मि॑न्। ऊध॑न् ॥३॥

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:36» मन्त्र:3 | अष्टक:5» अध्याय:4» वर्ग:1» मन्त्र:3 | मण्डल:7» अनुवाक:3» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जो (महः) महान् (दिवः) प्रकाश के (सदने) घर में (जायमानः) उत्पन्न होता हुआ (वृषभः) बलिष्ठ (सस्मिन्) अन्तरिक्ष में और (ऊधन्) उषाकाल में (अचिक्रदत्) आह्वान करता जिस में (ध्रजतः) जाते हुए (वातस्य) पवन के सम्बन्धी (सूदाः) पाप करनेवालों के (न) समान (धेनवः) गायें (इत्याः) जो कि पाने योग्य हैं उन को (रन्ते) रमता और सब को (आ, अपीपयन्त) सब ओर से बढ़ाता है, उस सूर्य को युक्ति के साथ उत्तम प्रयोग में लाओ ॥३॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । हे मनुष्यो ! जैसे प्रकाशमान पदार्थों में उत्पन्न हुआ रवि अन्तरिक्ष में प्रकाशित होता है वा जिस अन्तरिक्ष में सब प्राणी रमते हैं, उसी में सब सुख को प्राप्त होते हैं ॥३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्यैः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! यो महो दिवस्सदने जायमानो वृषभः सस्मिन्नूधन्नचिक्रदत् यस्मिन् ध्रजतो वातस्य सूदा न धेनव इत्या रन्ते सर्वानापीपयन्त तं सूर्यं संयुक्त्या सम्प्रयोजयन्तु ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (आ) समन्तात् (वातस्य) वायोः (ध्रजतः) गच्छतः (रन्ते) रमते (इत्याः) एतुं प्राप्तुं योग्याः (अपीपयन्त) प्याययन्ति (धेनवः) गावः (न) इव (सूदाः) पाककर्त्तारः (महः) महतः (दिवः) प्रकाशस्य (सदने) सीदन्ति यस्मिंस्तस्मिन् (जायमानः) उत्पद्यमानः (अचिक्रदत्) आह्वयति (वृषभः) बलिष्ठः (सस्मिन्) अन्तरिक्षे (ऊधन्) ऊधन्युषसि ॥३॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः । हे मनुष्या ! यथा प्रकाशवता जायमानो रविरन्तरिक्षे प्रकाशते यस्मिन्नन्तरिक्षे सर्वे प्राणिनो रमन्ते तस्मिन्नेव सर्वे सुखमश्नुवते ॥३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. हे माणसांनो! जसा प्रकाशमय पदार्थात उत्पन्न झालेला सूर्य अंतरिक्षात प्रकाशित होतो किंवा त्या अंतरिक्षात सर्व प्राणी रमतात व त्यातच सर्व सुखाला प्राप्त करतात. ॥ ३ ॥