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शं नो॑ धा॒ता शमु॑ ध॒र्ता नो॑ अस्तु॒ शं न॑ उरू॒ची भ॑वतु स्व॒धाभिः॑। शं रोद॑सी बृह॒ती शं नो॒ अद्रिः॒ शं नो॑ दे॒वानां॑ सु॒हवा॑नि सन्तु ॥३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

śaṁ no dhātā śam u dhartā no astu śaṁ na urūcī bhavatu svadhābhiḥ | śaṁ rodasī bṛhatī śaṁ no adriḥ śaṁ no devānāṁ suhavāni santu ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

शम्। नः॒। धा॒ता। शम्। ऊँ॒ इति॑। ध॒र्ता। नः॒। अ॒स्तु॒। शम्। नः॒। उ॒रू॒ची। भ॒व॒तु॒। स्व॒धाभिः॑। शम्। रोद॑सी॒ इति॑। बृ॒ह॒ती। शम्। नः॒। अद्रिः॑। शम्। नः॒। दे॒वाना॑म्। सु॒ऽहवा॑नि। स॒न्तु॒ ॥३॥

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:35» मन्त्र:3 | अष्टक:5» अध्याय:3» वर्ग:28» मन्त्र:3 | मण्डल:7» अनुवाक:3» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्यों को सृष्टि से कैसा उपकार लेना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे जगदीश्वर वा विद्वान् ! आप की कृपा और सङ्ग से (नः) हम लोगों के लिये (धाता) धारण करनेवाला (शम्) सुखरूप (उ) और (धर्ता) पुष्टि करनेवाला (नः) हम लोगों के लिये (शम्) सुखरूप (अस्तु) हो (स्वधाभिः) अन्नादिकों के साथ (उरूची) जो बहुत पदार्थों को प्राप्त होती वह पृथिवी (नः) हम लोगों के लिये (शम्) सुख देनेवाली (भवतु) हो (बृहती) महान् (रोदसी) प्रकाश और अन्तरिक्ष (नः) हम लोगों के लिये (शम्) सुखरूप होवें (अद्रिः) मेघ (नः) हमारे लिये (शम्) सुखकारक हो (नः) हम लोगों के लिये (देवानाम्) विद्वानों के (सुहवानि) सुन्दर आवाहन प्रशंसा से बुलावे (शम्) सुखरूप (सन्तु) हों ॥३॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य पुष्टि करनेवालों से उपकार लेना जानते हैं, वे सब सुखों को पाते हैं ॥३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्यैः सृष्ट्या कीदृगुपकारो ग्रहीतव्य इत्याह ॥

अन्वय:

हे जगदीश्वर विद्वन् वा ! भवत्कृपया सङ्गेन च नो धाता शमु धर्ता नः शमस्तु स्वधाभिः सहोरूची नः शं भवतु बृहती रोदसी नः शं भवतां अद्रिर्नः शं भवतु नो देवानां सुहवानि शं सन्तु ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (शम्) शमित्यस्य सर्वत्रैव पूर्वोक्तरीत्यार्थो वेदितव्यः (नः) अस्मभ्यम् (धाता) धर्ता (शम्) (उ) (धर्ता) पोषकः (नः) अस्याप्येवमेव चतुर्थीबहुवचनान्तस्यार्थो वेदितव्यः (अस्तु) (शम्) (नः) (उरूची) या बहूनञ्चति प्राप्नोति सा पृथिवी (भवतु) (स्वधाभिः) अन्नादिभिः (शम्) (रोदसी) द्यावान्तरिक्षे (बृहती) महत्यौ (शम्) (नः) (अद्रिः) मेघः (शम्) (नः) (देवानाम्) विदुषाम् (सुहवानि) सुष्ठु आह्वानानि प्रशंसनानि वा (सन्तु) ॥३॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्याः पोषकादिभ्य उपकारान् ग्रहीतुं विजानन्ति ते सर्वाणि सुखानि लभन्ते ॥३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे पोषकाकडून उपकार घेणे जाणतात त्यांना सर्व सुख मिळते. ॥ ३ ॥