वांछित मन्त्र चुनें

आ॒दि॒त्या रु॒द्रा वस॑वो जुषन्ते॒दं ब्रह्म॑ क्रि॒यमा॑णं॒ नवी॑यः। शृ॒ण्वन्तु॑ नो दि॒व्याः पार्थि॑वासो॒ गोजा॑ता उ॒त ये य॒ज्ञिया॑सः ॥१४॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ādityā rudrā vasavo juṣantedam brahma kriyamāṇaṁ navīyaḥ | śṛṇvantu no divyāḥ pārthivāso gojātā uta ye yajñiyāsaḥ ||

पद पाठ

आ॒दि॒त्याः। रु॒द्राः। वस॑वः। जु॒ष॒न्त॒। इ॒दम्। ब्रह्म॑। क्रि॒यमा॑णम्। नवी॑यः। शृ॒ण्वन्तु॑। नः॒। दि॒व्याः। पार्थि॑वासः। गोऽजा॑ताः। उ॒त। ये। य॒ज्ञिया॑सः ॥१४॥

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:35» मन्त्र:14 | अष्टक:5» अध्याय:3» वर्ग:30» मन्त्र:4 | मण्डल:7» अनुवाक:3» मन्त्र:14


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्य क्या अवश्य करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वानो ! जो आप लोग (आदित्याः) अड़तालीस वर्ष प्रमाण से ब्रह्मचर्य सेवन से विद्या पढ़े हुए हों वा (रुद्राः) चवालीस वर्ष प्रमाण ब्रह्मचर्य से विद्या पढ़े हुए हों वा (वसवः) चालीस वर्ष परिमाण जिसका है ऐसे ब्रह्मचर्य्य से विद्या पढ़े हुए हैं वा (दिव्याः) शुद्ध मनोहर गुण आदि में प्रसिद्ध वा (पार्थिवासः) पृथिवी में विदित वा (गोजाताः) सुशिक्षित वाणी से उत्पन्न हुए (उत) और (ये) जो (यज्ञियासः) यज्ञ सम्पादन करनेवाले हैं वे (नः) हम लोगों के लिये (इदम्) इस प्रत्यक्ष (नवीयः) अत्यन्त नवीन (क्रियमाणम्) वर्त्तमान में सिद्ध होते हुए (ब्रह्म) बहुत धन वा अन्न को (जुषन्त) सेवें और हम लोगों का पढ़ा हुआ (शृण्वन्तु) सुनें ॥१४॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को चाहिये कि धार्मिक विद्वानों को बुलाय सत्कार कर अन्नादिकों से अच्छे प्रकार तृप्त कर अपना पढ़ा अच्छे प्रकार सुना, शेष इन से सुनें, जिससे भ्रमरहित सब हों ॥१४॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्याः किमवश्यं कुर्युरित्याह ॥

अन्वय:

हे विद्वांसो ! ये भवन्त आदित्या रुद्रा वसवो दिव्याः पार्थिवासो गोजाता उत ये यज्ञियासः सन्ति ते न इदं नवीयः क्रियमाणं ब्रह्म जुषन्तास्माभिरधीतं शृण्वन्तु ॥१४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (आदित्याः) अष्टाचत्वारिंशद्वर्षकृतेन ब्रह्मचर्येण पूर्णविद्याः (रुद्राः) चतुश्चत्वारिंशद्वर्षप्रमितेन ब्रह्मचर्येणाधीतविद्याः (वसवः) चत्वारिंशद्वर्षपरिमाणेन ब्रह्मचर्येण पठितवेदशास्त्राः (जुषन्त) सेवन्ताम् (इदम्) प्रत्यक्षम् (ब्रह्म) बृहद्धनमन्नं वा (क्रियमाणम्) वर्त्तमाने सम्पाद्यमानम् (नवीयः) अतिशयेन नूतनम् (शृण्वन्तु) (नः) अस्माकं विद्याः (दिव्याः) दिवि शुद्धे कमनीये गुणादौ भवाः (पार्थिवासः) पृथिव्यां विदिताः (गोजाताः) गवा सुशिक्षितया वाचा प्रादुर्भूताः (उत) (ये) (यज्ञियासः) यज्ञसम्पादकाः ॥१४॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यैः धार्मिकान् विदुष आहूय सत्कृत्यान्नादिना सन्तर्प्य स्वश्रुतं संश्राव्य शेषमेभ्यः शृण्वन्तु यतो निर्भ्रमाः सर्वे स्युः ॥१४॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - माणसांनी धार्मिक विद्वानांना आमंत्रित करून सत्कार करावा. अन्न इत्यादींनी चांगल्या प्रकारे तृप्त करून स्वतः अध्ययन केलेले त्यांना ऐकवावे. उरलेले त्यांच्याकडून ऐकावे. ज्यामुळे सर्वजण भ्रमरहित बनावेत. ॥ १४ ॥