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ह्वया॑मि दे॒वाँ अया॑तुरग्ने॒ साध॑न्नृ॒तेन॒ धियं॑ दधामि ॥८॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

hvayāmi devām̐ ayātur agne sādhann ṛtena dhiyaṁ dadhāmi ||

पद पाठ

ह्वया॑मि। दे॒वान्। अया॑तुः। अ॒ग्ने॒। साध॑न्। ऋ॒तेन॑। धिय॑म्। द॒धा॒मि॒ ॥८॥

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:34» मन्त्र:8 | अष्टक:5» अध्याय:3» वर्ग:25» मन्त्र:8 | मण्डल:7» अनुवाक:3» मन्त्र:8


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर अध्यापक, अध्येताओं को क्या उपदेश करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) विद्वान् ! जैसे मैं (देवान्) विद्वानों को (ह्वयामि) बुलाता हूँ (ऋतेन) सत्य व्यवहार से (साधन्) सिद्ध करता हुआ (धियम्) उत्तम बुद्धि वा शुभ कर्म को (दधामि) धारण करता हूँ और (अयातुः) जो नहीं जाता उस स्थिर से विद्या ग्रहण करता हूँ, वैसे आप कन्या पढ़ाने का निबन्ध करो ॥८॥
भावार्थभाषाः - जो विद्वानों को बुला के और उनका सत्कार कर सत्य आचार से विद्या को धारण करते हैं, वे विद्वान् होते हैं ॥८॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनरध्यापका अध्येतॄन् किमुपदिशेयुरित्याह ॥

अन्वय:

हे अग्ने ! यथाऽहं देवान् ह्वयाम्यृतेन साधन्धियं दधाम्ययातुः स्थिराद्विद्यां गृह्णामि तथा त्वं कन्यापाठनस्य निबन्धं कुरु ॥८॥

पदार्थान्वयभाषाः - (ह्वयामि) (देवान्) विदुषः (अयातुः) यो न याति तस्मात् (अग्ने) विद्वन् (साधन्) (ऋतेन) सत्येन व्यवहारेण (धियम्) प्रज्ञां शुभं कर्म वा (दधामि) ॥८॥
भावार्थभाषाः - ये विदुष आहूय सत्कृत्य सत्याचारेण विद्यां धरन्ति ते विद्वांसो भवन्ति ॥८॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे विद्वानांना बोलावून त्यांचा सत्कार करून सत्याचरणाने विद्या धारण करतात ते विद्वान होतात. ॥ ८ ॥