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अ॒भि प्र स्था॒ताहे॑व य॒ज्ञं याते॑व॒ पत्म॒न्त्मना॑ हिनोत ॥५॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

abhi pra sthātāheva yajñaṁ yāteva patman tmanā hinota ||

पद पाठ

अ॒भि। प्र। स्था॒त॒। अह॑ऽइव। य॒ज्ञम्। याता॑ऽइव। पत्म॑न्। त्मना॑। हि॒नो॒त॒ ॥५॥

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:34» मन्त्र:5 | अष्टक:5» अध्याय:3» वर्ग:25» मन्त्र:5 | मण्डल:7» अनुवाक:3» मन्त्र:5


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर कन्याजन कैसे विद्या को बढ़ावें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे कन्याओ ! तुम विद्याप्राप्ति के लिये (अहेव) दिनों के समान (यज्ञम्) पढ़ने-पढ़ाने रूप यज्ञ के (अभि, प्र, स्थात) सब ओर से जाओ (त्मना) अपने से (पत्मन्) मार्ग में (यातेव) जाते हुए के समान (हिनोत) बढ़ाओ ॥५॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । हे कन्याओ ! जैसे दिन अनुकूल क्रम से जाते और आते हैं और जैसे बटोही जन नित्य चलते हैं, वैसे ही अनुकूल क्रम से विद्याप्राप्ति मार्ग से विद्याप्राप्तिरूप यज्ञ को बढ़ाओ ॥५॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः कन्याः कथं विद्यां वर्धयेयुरित्याह ॥

अन्वय:

हे कन्या ! यूयं विद्याप्राप्तयेऽहेव यज्ञमभिप्रस्थात त्मना पत्मन् यातेव हिनोत ॥५॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अभि) (प्र) (स्थात) (अहेव) अहानीव (यज्ञम्) अध्ययनाध्यापनाख्यम् (यातेव) गच्छन्निव (पत्मन्) मार्गे (त्मना) आत्मना (हिनोत) वर्धयत ॥५॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः । हे कन्या ! यथा दिनान्यनुक्रमेण गच्छन्त्याऽऽगच्छन्ति यथा च पथिका नित्यं चलन्ति तथैवानुक्रमेण विद्याप्राप्तिमार्गेण विद्याप्राप्तिरूपं यज्ञं वर्धयत ॥५॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. हे कन्यांनो ! जसे दिवस अनुक्रमानुसार चालतात व प्रवासी नित्य प्रवास करतात तसेच अनुकूल क्रमाने विद्याप्राप्ती मार्गाने विद्याप्राप्तीरूपी यज्ञ वाढवा. ॥ ५ ॥