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आप॑श्चिदस्मै॒ पिन्व॑न्त पृ॒थ्वीर्वृ॒त्रेषु॒ शूरा॒ मंस॑न्त उ॒ग्राः ॥३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

āpaś cid asmai pinvanta pṛthvīr vṛtreṣu śūrā maṁsanta ugrāḥ ||

पद पाठ

आपः॑। चि॒त्। अ॒स्मै॒। पिन्व॑न्त। पृ॒थ्वीः। वृ॒त्रेषु॑। शूराः॑। मंस॑न्ते। उ॒ग्राः ॥३॥

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:34» मन्त्र:3 | अष्टक:5» अध्याय:3» वर्ग:25» मन्त्र:3 | मण्डल:7» अनुवाक:3» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वे कैसी हों, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - जो कन्या (पृथ्वीः) भूमि और (आपः) जल (चित्) ही के समान (अस्मै) इस विद्याव्यवहार के लिये (पिन्वन्त) सिंचन करती और (वृत्रेषु) धनों के निमित्त (उग्राः) तेजस्वी (शूराः) शूरवीरों के समान (मंसन्ते) मान करती हैं, वे विदुषी होती हैं ॥३॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । जो कन्या जल के समान कोमलत्वादि गुणयुक्त हैं, पृथिवी के समान सहनशील और शूरों के समान उत्साहिनी विद्याओं को ग्रहण करती हैं, वे सौभाग्यवती होती हैं ॥३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्ताः कीदृशो भवेयुरित्याह ॥

अन्वय:

याः कन्याः पृथ्वीरापश्चिदस्मै पिन्वन्त वृत्रेषु उग्राः शूरा इव मंसन्ते ता विदुष्यो जायन्ते ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (आपः) जलानि (चित्) इव (अस्मै) विद्याव्यवहाराय (पिन्वन्त) सिञ्चन्ति (पृथ्वीः) भूमीः (वृत्रेषु) धनेषु (शूराः) (मंसन्ते) परिणमन्ते (उग्राः) तेजस्विनः ॥३॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः । याः कन्या जलवत्कोमलत्वादिगुणाः पृथिवीवत्क्षमाशीलाः शूरवदुत्साहिन्यो विद्या गृह्णन्ति ताः सौभाग्यवत्यो जायन्ते ॥३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. ज्या कन्या जलाप्रमाणे कोमल गुणयुक्त असतात, पृथ्वीप्रमाणे सहनशील असून शूराप्रमाणे उत्साही असून विद्या ग्रहण करतात त्या सौभाग्यशाली असतात. ॥ ३ ॥