वांछित मन्त्र चुनें

अनु॒ तदु॒र्वी रोद॑सी जिहाता॒मनु॑ द्यु॒क्षो वरु॑ण॒ इन्द्र॑सखा। अनु॒ विश्वे॑ म॒रुतो॒ ये स॒हासो॑ रा॒यः स्या॑म ध॒रुणं॑ धि॒यध्यै॑ ॥२४॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

anu tad urvī rodasī jihātām anu dyukṣo varuṇa indrasakhā | anu viśve maruto ye sahāso rāyaḥ syāma dharuṇaṁ dhiyadhyai ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अनु॑। तत्। उ॒र्वी इति॑। रोद॑सी॒ इति॑। जि॒हा॒ता॒म्। अनु॑। द्यु॒क्षः। वरु॑णः। इन्द्र॑ऽसखा। अनु॑। विश्वे॑। म॒रुतः॑। ये। स॒हासः॑। रा॒यः। स्या॒म॒। ध॒रुण॑म्। धि॒यध्यै॑ ॥२४॥

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:34» मन्त्र:24 | अष्टक:5» अध्याय:3» वर्ग:27» मन्त्र:4 | मण्डल:7» अनुवाक:3» मन्त्र:24


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर विद्वान् जन किसके तुल्य क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वान् जनो ! जैसे (उर्वीः) बहुपदार्थयुक्त (रोदसी) आकाश और पृथिवी (तत्) उन पदार्थों को (अनु, जिहाताम्) अनुकूल प्राप्त हों वा (इन्द्रसखा) परमैश्वर्य राजा सखा मित्र जिस का (द्युक्षः) प्रकाशों को वसाता (वरुणः) और श्रेष्ठ जन (अनु) पीछे जावे वा (ये) जो (विश्वे) सब (सहासः) सहनशील और बलवान् (मरुतः) मनुष्य अनुकूलता से प्राप्त हों, वैसे हम लोग (रायः) धन के (धरुणम्) धारण करनेवाले को (धियध्यै) धारण करने को समर्थ (स्याम) हों ॥२४॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जैसे सृष्टिस्थ भूमि आदि पदार्थ सब को धारण कर सुख देते हैं, वैसे ही आप हों ॥२४॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनविद्वांसः किंवत्किं कुर्युरित्याह ॥

अन्वय:

हे विद्वांसो ! यथोर्वी रोदसी तदनु जिहातामिन्द्रसखा द्युक्षो वरुणोऽनुजिहातां ये विश्वे सहासो मरुतोऽनुजिहातान्तथा वयं रायो धरुणं धियध्यै शक्तिमन्तः स्याम ॥२४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अनु) (तत्) तानि (उर्वीः) बहुपदार्थयुक्ते (रोदसी) द्यावापृथिव्यौ (जिहाताम्) प्राप्नुतः (अनु) (द्युक्षः) यो दिवः प्रकाशान् वासयति (वरुणः) श्रेष्ठः (इन्द्रसखा) इन्द्रः परमैश्वर्यो राजा सखा यस्य सः (अनु) (विश्वे) सर्वे (मरुतः) मनुष्याः (ये) (सहासः) सहनशीलाः बलवन्तः (रायः) धनस्य (स्याम) (धरुणम्) (धियध्यै) धर्तुं समर्थाः ॥२४॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या ! यथा सृष्टिस्था भूम्यादयः पदार्थास्सर्वान् धृत्वा सुखं प्रयच्छन्ति तथैव यूयं भवत ॥२४॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो ! जसे सृष्टीतील पदार्थ सर्वांना धारण करून सुख देतात तसे तुम्ही व्हा. ॥ २४ ॥