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तप॑न्ति॒ शत्रुं॒ स्व१॒॑र्ण भूमा॑ म॒हासे॑नासो॒ अमे॑भिरेषाम् ॥१९॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tapanti śatruṁ svar ṇa bhūmā mahāsenāso amebhir eṣām ||

पद पाठ

तप॑न्ति। शत्रु॑म्। स्वः॑। न। भूम॑। म॒हाऽसे॑नासः। अमे॑भिः। ए॒षा॒म् ॥१९॥

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:34» मन्त्र:19 | अष्टक:5» अध्याय:3» वर्ग:26» मन्त्र:9 | मण्डल:7» अनुवाक:3» मन्त्र:19


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

कौन शत्रुओं के निवारण में समर्थ होते हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (महासेनासः) जिनकी बड़ी सेना है वे जन (एषाम्) इन वीरों के (अमेभिः) बलादिकों से (शत्रुम्) शत्रु को (तपन्ति) तपाते हैं उनसे साथ राजा आदि हम लोग (स्वः) सुख (न) जैसे हो वैसे (भूम) प्रसिद्ध हों ॥१९॥
भावार्थभाषाः - हे राजन् ! यदि आपसे योद्धा शूरवीर जनों की सेना सत्कार कर रक्खी जाय तो आप के शत्रुजन बिला जायें और सुख निरन्तर बढ़े ॥१९॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

के शत्रुनिवारणे समर्था भवन्तीत्याह ॥

अन्वय:

ये महासेनास एषाममेभिः शत्रुं तपन्ति तैस्सह राजादयो वयं स्वर्न भूम ॥१९॥

पदार्थान्वयभाषाः - (तपन्ति) (शत्रुम्) (स्वः) सुखम् (न) इव (भूम) भवेम। अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (महासेनासः) महती सेना येषान्ते (अमेभिः) बलादिभिः (एषाम्) वीराणाम् ॥१९॥
भावार्थभाषाः - हे राजन् ! यदि भवता योद्धॄणां शूरवीराणां सेना सत्कृत्य रक्ष्येत तर्हि ते शत्रवो निलीयेरन् सुखं च सततं वर्धेत ॥१९॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे राजा ! जर योद्धे असलेल्या शूरवीर सेनेचा सत्कार केलास तर तुझ्या शत्रूंचे दहन होईल व सुख वाढेल. ॥ १९ ॥