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व्ये॑तु दि॒द्युद्द्वि॒षामशे॑वा यु॒योत॒ विष्व॒ग्रप॑स्त॒नूना॑म् ॥१३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

vy etu didyud dviṣām aśevā yuyota viṣvag rapas tanūnām ||

पद पाठ

वि। ए॒तु॒। दि॒द्युत्। द्वि॒षाम्। अशे॑वा। यु॒योत॑। विष्व॑क्। रपः॑। त॒नूना॑म् ॥१३॥

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:34» मन्त्र:13 | अष्टक:5» अध्याय:3» वर्ग:26» मन्त्र:3 | मण्डल:7» अनुवाक:3» मन्त्र:13


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वे राजजन क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे राजजन विद्वानो ! तुम (द्विषाम्) द्वेष करनेवालों को (अशेवा) असुख अर्थात् दुःख को करो (तनूनाम्) शरीरों के (दिद्युत्) निरन्तर प्रकाशमान (विष्वक्) और व्याप्त (रपः) अपराध को (युयोत) अलग करो जिसमें भद्र उत्तम सब मनुष्यों को सुख (वि, एतु) व्याप्त हो ॥१३॥
भावार्थभाषाः - हे राजजनो ! तुम, जो धार्मिक सज्जनों को पीड़ा देवें उनको दण्ड से पवित्र करो, जिससे सब ओर से सबको सुख प्राप्त हो ॥१३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्ते राजजनाः किं कुर्युरित्याह ॥

अन्वय:

हे राजजना विद्वांसो ! यूयं द्विषामशेवा कुरु तनूनां दिद्युद्विष्वग्रपो युयोत पृथक्कुरुत यतः भद्रान् सर्वान् सुखं व्येतु ॥१३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (वि) विशेषेण (एतु) प्राप्नोतु (दिद्युत्) भृशं द्योतमानम् (द्विषाम्) द्वेष्टॄणाम् (अशेवा) असुखानि (युयोत) (विष्वक्) व्याप्तम् (रपः) अपराधम् (तनूनाम्) शरीराणाम् ॥१३॥
भावार्थभाषाः - हे राजजना ! यूयं ये धार्मिकान् पीडयेयुस्तान् दण्डेन पवित्रान् कुरुत यतो सर्वतस्सर्वान् सुखं प्राप्नुयात् ॥१३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे राजजनांनो ! जे धार्मिक सज्जन लोकांना त्रास देतात त्यांना दंड देऊन ठीक करा. ज्यामुळे सर्वांना सर्वत्र सुख मिळो. ॥ १३ ॥