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त इन्नि॒ण्यं हृद॑यस्य प्रके॒तैः स॒हस्र॑वल्शम॒भि सं च॑रन्ति। य॒मेन॑ त॒तं प॑रि॒धिं वय॑न्तोऽप्स॒रस॒ उप॑ सेदु॒र्वसि॑ष्ठाः ॥९॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ta in niṇyaṁ hṛdayasya praketaiḥ sahasravalśam abhi saṁ caranti | yamena tatam paridhiṁ vayanto psarasa upa sedur vasiṣṭhāḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ते। इत्। नि॒ण्यम्। हृद॑यस्य। प्र॒ऽके॒तैः। स॒हस्र॑ऽवल्शम्। अ॒भि। सम्। च॒र॒न्ति॒। य॒मेन॑। त॒तम्। प॒रि॒ऽधिम्। वय॑न्तः। अ॒प्स॒रसः॑। उप॑। से॒दुः॒। वसि॑ष्ठाः ॥९॥

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:33» मन्त्र:9 | अष्टक:5» अध्याय:3» वर्ग:23» मन्त्र:4 | मण्डल:7» अनुवाक:2» मन्त्र:9


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

कौन सत्य का निश्चय करने योग्य हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अप्सरसः) जो अन्तरिक्ष में जाते हैं वे और (यमेन) नियन्ता जगदीश्वर से (ततम्) व्याप्त (परिधिम्) सर्व लोकों के परकोटे को (वयन्तः) व्याप्त होते हुए (वसिष्ठाः) अतीव विद्यावान् जन (प्रकेतैः) उत्तम बुद्धियों से (हृदयस्य) आत्मा के बीच (निण्यम्) निर्णीत अन्तर्गत (सहस्रवल्शम्) हजारों असंख्य अङ्कुरों के समान शास्त्रबोध जिसमें उस विद्या व्यवहार को (उप, सेदुः) उपस्थित होते अर्थात् स्थिर होते हैं (ते, इत्) वे ही पूर्ण विद्याओं का (अभि,सम्, चरन्ति) सब ओर से संचार करते हैं ॥९॥
भावार्थभाषाः - वे ही विद्वान् जन संसार के उपकारी होते हैं, जो दीर्घ ब्रह्मचर्य्य से और आप्त विद्वानों की उत्तेजना से शिक्षा पाय समस्त विद्या पढ़ परमात्मा से व्याप्त सर्व सृष्टिक्रम को प्रवेश करते हैं ॥९॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

के सत्यं निश्चयं कर्त्तुमर्हन्तीत्याह ॥

अन्वय:

ये अप्सरसो यमेन सह ततं परिधिं वयन्तो वसिष्ठाः प्रकेतैर्हृदयस्य निण्यं सहस्रवल्शमुपसेदुस्त इत्पूर्णविद्या अभि सं चरन्ति ॥९॥

पदार्थान्वयभाषाः - (ते) विद्वांसः (इत्) एव (निण्यम्) निर्णीतान्तर्गतम् (हृदयस्य) आत्मनो मध्ये (प्रकेतैः) प्रकृष्टाभिः प्रज्ञाभिः (सहस्रवल्शम्) सहस्राण्यसंख्या वल्शा अङ्कुरा इव शास्त्रबोधा यस्मिंस्तं विज्ञानमयं व्यवहारम् (अभि) आभिमुख्ये (सम्) (चरन्ति) सम्यगाचरन्ति (यमेन) नियन्त्रा जगदीश्वरेण (ततम्) व्याप्तम् (परिधिम्) सर्वलोकावरणम् (वयन्तः) व्याप्नुवन्तः (अप्सरसः) या अप्स्वन्तरिक्षे सरन्ति गच्छन्ति ताः (उप) (सेदुः) सीदन्ति (वसिष्ठाः) अतिशयेन विद्यावन्तः ॥९॥
भावार्थभाषाः - त एव विद्वांसो जगदुपकारिणो भवन्ति ये दीर्घेण ब्रह्मचर्येणाप्तानां विदुषां सकाशाच्छिक्षां प्राप्याऽखिलां विद्याम् अधीत्य परमात्मना व्याप्तं सर्वं सृष्टिक्रमं विशन्ति ॥९॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे दीर्घ ब्रह्मचर्य प्राप्त करून विद्वानांच्या सहवासाने शिक्षण प्राप्त करून संपूर्ण विद्या शिकतात व परमात्म्याकडून व्याप्त असलेल्या सर्व सृष्टीत वावरतात तेच विद्वान जगाला उपकारक ठरतात. ॥ ९ ॥