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सूर्य॑स्येव व॒क्षथो॒ ज्योति॑रेषां समु॒द्रस्ये॑व महि॒मा ग॑भी॒रः। वात॑स्येव प्रज॒वो नान्येन॒ स्तोमो॑ वसिष्ठा॒ अन्वे॑तवे वः ॥८॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sūryasyeva vakṣatho jyotir eṣāṁ samudrasyeva mahimā gabhīraḥ | vātasyeva prajavo nānyena stomo vasiṣṭhā anvetave vaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सूर्य॑स्यऽइव। व॒क्षथः॑। ज्योतिः॑। ए॒षा॒म्। स॒मु॒द्रस्य॑ऽइव। म॒हि॒मा। ग॒भी॒रः। वात॑स्यऽइव। प्र॒ऽज॒वः। न। अ॒न्येन॑। स्तोमः॑। व॒सि॒ष्ठाः॒। अनु॑ऽएतवे। वः॒ ॥८॥

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:33» मन्त्र:8 | अष्टक:5» अध्याय:3» वर्ग:23» मन्त्र:3 | मण्डल:7» अनुवाक:2» मन्त्र:8


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर विद्वान् कैसे हों, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (वसिष्ठाः) अतीव विद्या में वास करनेवालो ! जो (अन्वेतवे) विशेष जानने को, प्राप्त होने को वा गमन को आप्त अत्यन्त धर्मशील विद्वान् हैं (एषाम्) इन बिजुली आदि पदार्थों के और (वः) तुम्हारे विशेष जानने को प्राप्त होने को वा गमन के (सूर्यस्येव) सूर्य के समान (वक्षथः) रोष वा (ज्योतिः) प्रकाश (समुद्रस्येव) समुद्र के समान (महिमा) महिमा (गभीरः) गम्भीर (वातस्येव) पवन के समान (प्रजवः) उत्तम वेग और (स्तोमः) प्रशंसा है वह (अन्येन) और के समान (न) नहीं है ॥८॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । हे मनुष्यो ! जिन धार्मिक विद्वानों का सूर्य के समान विद्या और धर्म का प्रकाश, दुष्टाचार पर क्रोध, समुद्र के समान गम्भीरता, पवन के समान अच्छे कर्मों में वेग हो वे मिलने योग्य हैं, यह जानना चाहिये ॥८॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्विद्वांसः कीदृशा भवेयुरित्याह ॥

अन्वय:

हे वसिष्ठा ! योऽन्वेतवे आप्ता विद्वांस एषां वोऽन्वेतवे सूर्यस्येव वक्षथो ज्योतिः समुद्रस्येव महिमा गभीरो वातस्येव प्रजवः स्तोमोऽस्ति सोऽन्येन तुल्यो नास्ति ॥८॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सूर्यस्येव) (वक्षथः) रोषः (ज्योतिः) प्रकाशः (एषाम्) विद्युदादीनाम् (समुद्रस्येव) (महिमा) महतो भावः (गभीरः) अगाधः (वातस्येव) (प्रजवः) प्रकृष्टो वेगः (न) (अन्येन) तुल्यः (स्तोमः) प्रशंसा (वसिष्ठाः) अतिशयेन विद्यावासाः (अन्वेतवे) अन्वेतुं विज्ञातुं प्राप्तुं गन्तुं वा (वः) युष्माकम् ॥८॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः । हे मनुष्या ! येषां धार्मिकाणां विदुषां सूर्यवद्विद्याधर्मप्रकाशो दुष्टाचारे क्रोधः समुद्रवद्गाम्भीर्यं वायुवत्सत्कर्मसु वेगो भवेत्त एव सङ्गन्तुमर्हाः सन्तीति वेद्यम् ॥८॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! ज्या धार्मिक विद्वानाचा सूर्याप्रमाणे विद्या व धर्माचा प्रकाश, दुष्टाचाऱ्यावर क्रोध, समुद्राप्रमाणे गंभीरता, वायूप्रमाणे चांगल्या कामात वेग असतो त्यांच्याशीच मेळ घालणे योग्य आहे हे जाणावे. ॥ ८ ॥