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त्रयः॑ कृण्वन्ति॒ भुव॑नेषु॒ रेत॑स्ति॒स्रः प्र॒जा आर्या॒ ज्योति॑रग्राः। त्रयो॑ घ॒र्मास॑ उ॒षसं॑ सचन्ते॒ सर्वाँ॒ इत्ताँ अनु॑ विदु॒र्वसि॑ष्ठाः ॥७॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

trayaḥ kṛṇvanti bhuvaneṣu retas tisraḥ prajā āryā jyotiragrāḥ | trayo gharmāsa uṣasaṁ sacante sarvām̐ it tām̐ anu vidur vasiṣṭhāḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

त्रयः॑। कृ॒ण्व॒न्ति॒। भुव॑नेषु। रेतः॑। ति॒स्रः। प्र॒ऽजाः। आर्याः॑। ज्योतिः॑ऽअग्राः। त्रयः॑। घ॒र्मासः॑। उ॒षस॑म्। स॒च॒न्ते॒। सर्वा॑न्। इत्। तान्। अनु॑। वि॒दुः॒। वसि॑ष्ठाः ॥७॥

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:33» मन्त्र:7 | अष्टक:5» अध्याय:3» वर्ग:23» मन्त्र:2 | मण्डल:7» अनुवाक:2» मन्त्र:7


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्य क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जैसे (त्रयः) तीन (भुवनेषु) लोकों में (रेतः) वीर्य (कृण्वन्ति) करते हैं जैसे (त्रयः) तीन (घर्मासः) पाप (उषसम्) प्रभातवेला और (ज्योतिः) विद्याप्रकाश आदि का (सचन्ते) सम्बन्ध करते हैं, वैसे (तिस्रः) तीन अर्थात् विद्या, राजा और धर्मसभास्थ (वसिष्ठाः) अतीव धन में स्थिर (आर्याः) उत्तम गुण, कर्म, स्वभाववाले पुरुष (अग्राः) अग्रगण्य (प्रजाः) प्रजा जन (तान्) उन (सर्वान्) सब को (इत्, अनु, विदुः) ही अनुकूल जानते हैं और विद्या प्रकाश आदि को सम्बन्ध करते हैं ॥७॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है । जैसे कार्य्य और कारण को कार्य में स्थिर बिजुलियाँ सूर्य आदि ज्योति को प्रकाशित करती हैं, प्रभातवेला और दिन को उत्पन्न करती हैं, वैसे तीन सभा धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष साधन देनेवाले प्रकाशों को करती हैं ॥७॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्याः कि कुर्य्युरित्याह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! यथा त्रयो भुवनेषु रेतः कृण्वन्ति यथा त्रयो घर्मास उषसं ज्योतिः सचन्ते तथा तिस्रो वसिष्ठा आर्या अग्रा प्रजास्तान् सर्वान्निदनुविदुर्ज्योतिः सचन्ते ॥७॥

पदार्थान्वयभाषाः - (त्रयः) विद्युद्भौमसूर्याख्याऽग्नयो भूम्यप्तेजांसि वा (कृण्वन्ति) (भुवनेषु) लोकेषु (रेतः) वीर्यम् (तिस्रः) विद्याराजधर्मसभास्थाः (प्रजाः) (आर्याः) उत्तमगुणकर्मस्वभावाः (ज्योतिः) विद्याप्रकाशादिकम् (अग्राः) अग्रगण्याः (त्रयः) (घर्मासः) पापानि (उषसम्) प्रभातवेलाम् (सचन्ते) सम्बध्नन्ति (सर्वान्) (इत्) एव (तान्) (अनु) (विदुः) जानन्ति (वसिष्ठाः) ॥७॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा कार्यकारणकार्यस्था विद्युतः सूर्यादिकं ज्योतिः प्रकाशयन्त्युषसं दिनं च जनयन्ति तथा तिस्रः सभा धर्मार्थकाममोक्षसाधनप्रकाशान् कुर्वन्ति ॥७॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जशी कार्यकारणात असलेली विद्युत, सूर्य इत्यादी ज्योती प्रकाशित करते, प्रभातवेला व दिवस निर्माण करते तशा तीन सभा (विद्या, राज्य, धर्म) धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष देणाऱ्या साधनांना प्रकाशित करतात. ॥ ७ ॥