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द॒ण्डाइ॒वेद्गो॒अज॑नास आस॒न्परि॑च्छिन्ना भर॒ता अ॑र्भ॒कासः॑। अभ॑वच्च पुरए॒ता वसि॑ष्ठ॒ आदित्तृत्सू॑नां॒ विशो॑ अप्रथन्त ॥६॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

daṇḍā ived goajanāsa āsan paricchinnā bharatā arbhakāsaḥ | abhavac ca puraetā vasiṣṭha ād it tṛtsūnāṁ viśo aprathanta ||

पद पाठ

द॒ण्डाऽइ॑व। इत्। गो॒ऽअज॑नासः। आ॒स॒न्। परि॑ऽच्छिन्नाः। भ॒र॒ताः। अ॒र्भ॒कासः॑। अभ॑वत्। च॒। पु॒रः॒ऽए॒ता। वसि॑ष्ठः। आत्। इत्। तृत्सू॑नाम्। विशः॑। अ॒प्र॒थ॒न्त॒ ॥६॥

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:33» मन्त्र:6 | अष्टक:5» अध्याय:3» वर्ग:23» मन्त्र:1 | मण्डल:7» अनुवाक:2» मन्त्र:6


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर कौन पढ़ाने और कौन न पढ़ाने योग्य हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वानो ! जो (गोअजनासः) सुशिक्षित वाणी में अप्रसिद्ध हुए (परिच्छिन्नाः) छिन्न-भिन्न विज्ञानवाले (भरताः) देह धारण और पुष्टि करने से युक्त (अर्भकासः) थोड़ी-थोड़ी आयु के बालक (दण्डाइव) लट्ठ से सूखे हृदय में अभिमान करनेवाले (इत्) ही (आसन्) हैं उन (तृत्सूनाम्) अनादर किये हुओं के बीच (विशः) प्रजा मनुष्यों को (अप्रथन्त) प्रख्यात करते हैं (आत्, इत्) और ही इनके जो (पुरएता) आगे जानेवाला (वसिष्ठः) अतीव धनाढ्य (अभवत्) हो (च) वही इन को अच्छी प्रकार शिक्षा दे ॥६॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । जो मनुष्य दण्ड के समान जड़बुद्धि हों, वे अच्छी परीक्षा कर न पढ़ाने योग्य और जो बुद्धिमान् हों वे पढ़ाने योग्य होते हैं, जो विद्या व्यवहार में प्रधान हो, वही विद्याविभाग की उत्तम प्रबन्ध से शिक्षा पहुँचावे ॥६॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः केऽध्याप्या अनध्याप्याश्च भवन्तीत्याह ॥

अन्वय:

हे विद्वांसो ! ये गोअजनासः परिच्छिन्ना भरता अर्भकासो दण्डा इवेदासँस्तेषां तृत्सूनां विशोऽप्रथन्त। आदिदेषां यः पुरएता वसिष्ठोऽभवत् स चैतान् सुशिक्षयेत् ॥६॥

पदार्थान्वयभाषाः - (दण्डाइव) यष्टिका इव शुष्कहृदयाऽभिमानिनः (इत्) (गोअजनासः) गवि सुशिक्षितायां वाच्यप्रादुर्भूताः (आसन्) सन्ति (परिच्छिन्नाः) छिन्नभिन्नविज्ञानाः (भरताः) देहधारकपोषकाः (अर्भकासः) अल्पवयसो बालका इव क्षुद्राशयाः (अभवत्) भवति (च) (पुरएता) यः पुर एति (वसिष्ठः) अतिशयेन वसुमान् धनाढ्यः (आत्) आनन्तर्ये (इत्) (तृत्सूनाम्) अनादृतानाम् (विशः) प्रजा मनुष्यान् (अप्रथन्त) प्रथयन्ति ॥६॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः । ये मनुष्या दण्डयञ्जडबुद्धयः स्युस्ते सुपरीक्ष्याऽनध्यापनीया भवन्ति ये च धीमन्तः स्युस्ते पाठनीया यो विद्याव्यवहारे प्रधानः स्यात्स एवविद्याविभागस्य सुष्ठु प्रबन्धेन शिक्षां प्रापयेत् ॥६॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जी माणसे दंडाप्रमाणे (राजचिन्ह) जडबुद्धी असतात ती अध्यापनायोग्य नसतात. जे बुद्धिमान असतात ते अध्यापनायोग्य असतात. त्यांची परीक्षा करून जे विद्याव्यवहारात मुख्य असतात त्यांनीच विद्या विभागाची उत्तम व्यवस्था करून शिक्षण द्यावे. ॥ ६ ॥