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ए॒वेन्नु कं॒ सिन्धु॑मेभिस्ततारे॒वेन्नु कं॑ भे॒दमे॑भिर्जघान। ए॒वेन्नु कं॑ दाशरा॒ज्ञे सु॒दासं॒ प्राव॒दिन्द्रो॒ ब्रह्म॑णा वो वसिष्ठाः ॥३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

even nu kaṁ sindhum ebhis tatāreven nu kam bhedam ebhir jaghāna | even nu kaṁ dāśarājñe sudāsam prāvad indro brahmaṇā vo vasiṣṭhāḥ ||

पद पाठ

ए॒व। इत्। नु। क॒म्। सिन्धु॑म् ए॒भिः॒। त॒ता॒र॒। ए॒व। इत्। नु। क॒म्। भे॒दम्। ए॒भिः॒। ज॒घा॒न॒। ए॒व। इत्। नु। क॒म्। दा॒श॒ऽरा॒ज्ञे। सु॒ऽदास॑म्। प्र। आ॒व॒त्। इन्द्रः॑। ब्रह्म॑णा। वः॒। व॒सि॒ष्ठाः॒ ॥३॥

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:33» मन्त्र:3 | अष्टक:5» अध्याय:3» वर्ग:22» मन्त्र:3 | मण्डल:7» अनुवाक:2» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्या क्या-क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (वसिष्ठाः) अत्यन्त ब्रह्मचर्य के बीच जिन्होंने वास किया, वह हे विद्वानो ! (इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् यह जन (एभिः) उत्तम विद्वानों के साथ (कम्, एव, इत्) किसी (सिन्धुम्) नदी को भी (नु) शीघ्र (ततार) तरे (एभिः) इन उत्तम विद्वानों के साथ (कम्, एव, इत्) किसी को भी (नु) शीघ्र (जघान) मारे (दाशराज्ञे) जो सुख देता है उस के लिये (कम्, एव, इत्) किसी (भेदम्) विदीर्ण करने योग्य को भी (ब्रह्मणा) धन से (नु) शीघ्र (प्र, आवत्) अच्छे प्रकार रक्खे और (सुदासम्) अच्छे देनेवाले वा सेवक को तथा (वः) तुम लोगों को भी (नु) शीघ्र रक्खे ॥३॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य नौकादिकों से समुद्रादिकों को अच्छे प्रकार शीघ्र तरें, वीरों से शत्रुओं को शीघ्र विनाशें, राजा और राज्य की रक्षा करें, वे मान करने योग्य हों ॥३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्याः किं किं कुर्य्युरित्याह ॥

अन्वय:

हे वसिष्ठा ! इन्द्रोऽयमेभिः कमेवेत्सिन्धुं नु ततार एभिः कमेवेन्नु जघान दाशराज्ञे कमेवेद् भेदं ब्रह्मणा नु प्रावत् सुदासं वो युष्माँश्च नु प्रावत् ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (एव) (इत्) अपि (नु) क्षिप्रम् (कम्) (सिन्धुम्) नदीम् (एभिः) उत्तमैर्विद्वद्भिः (ततार) तरेत् (एव) (इत्) (नु) (कम्) (भेदम्) भेदनीयं विदारणीयम् (एभिः) (जघान) हन्यात् (एव) (इत्) (नु) (कम्) (दाशराज्ञे) यो दाशति सुखं ददाति राजा तस्मै (सुदासम्) सुष्ठु दातारं सेवकं वा (प्र) (आवत्) प्रकर्षेण रक्षेत् (इन्द्रः) परमैश्वर्यो जनः (ब्रह्मणा) धनेन (वः) युष्मान् (वसिष्ठाः) अतिशयेन ब्रह्मचर्ये कृतवासाः ॥३॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्या नौकाभिः समुद्रादिकं सद्यस्तरेयुर्वीरैः शत्रून् क्षिप्रं विनाशयेयू राज्ञो राष्ट्रस्य च रक्षाः सर्वदा कुर्य्युस्ते माननीया भवेयुः ॥३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे नौका इत्यादींनी समुद्रातून चांगल्या प्रकारे शीघ्र तरून जातात, वीरांकडून शत्रूंचा शीघ्र नाश करतात, राजा व राज्याचेही रक्षण करतात ती मान देण्यायोग्य असतात. ॥ ३ ॥