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देवता: त एव ऋषि: वसिष्ठः छन्द: त्रिष्टुप् स्वर: धैवतः

स प्र॑के॒त उ॒भय॑स्य प्रवि॒द्वान्त्स॒हस्र॑दान उ॒त वा॒ सदा॑नः। यमेन॑ त॒तं प॑रि॒धिं व॑यि॒ष्यन्न॑प्स॒रसः॒ परि॑ जज्ञे॒ वसि॑ष्ठः ॥१२॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sa praketa ubhayasya pravidvān sahasradāna uta vā sadānaḥ | yamena tatam paridhiṁ vayiṣyann apsarasaḥ pari jajñe vasiṣṭhaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सः। प्र॒ऽके॒तः। उ॒भय॑स्य। प्र॒ऽवि॒द्वान्। स॒हस्र॑ऽदानः। उ॒त। वा॒। सऽदा॑नः। यमेन॑। त॒तम्। प॒रि॒ऽधिम्। व॒यि॒ष्यन्। अ॒प्स॒रसः॑। परि॑। ज॒ज्ञे॒। वसि॑ष्ठः ॥१२॥

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:33» मन्त्र:12 | अष्टक:5» अध्याय:3» वर्ग:24» मन्त्र:2 | मण्डल:7» अनुवाक:2» मन्त्र:12


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वह विद्वान् कैसा हो, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जो (उभयस्य) जन्म और विद्या-जन्म दोनों का (प्रविद्वान्) उत्तम विद्वान् (प्रकेतः) उत्तम बुद्धियुक्त (सहस्रदानः) हजारों पदार्थ देनेवाला (उत, वा) अथवा (सदानः) दानयुक्त (यमेन) वायु वा बिजुली के साथ वर्त्तमान (ततम्) विस्तृत (परिधिम्) परिधि को (वयिष्यन्) खर्च करता हुआ (वसिष्ठः) अतीव धनवान् (अप्सरसः) अन्तरिक्ष में चलनेवाले वायु से (परि, जज्ञे) सर्वतः प्रसिद्ध होता है (सः) वह सब को सेवा करने योग्य है ॥१२॥
भावार्थभाषाः - जिस मनुष्य का माता पिता से प्रथम जन्म, दूसरा आचार्य से विद्या द्वारा होता है, वही आकाश के पदार्थों को जाननेवाला उत्पन्न हुआ पूर्ण विद्वान् अतुल सुख का देनेवाला है ॥१२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः स विद्वान् कीदृशो भवेदित्याह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! य उभयस्य प्रविद्वान् प्रकेतः सहस्रदान उत वा सदानो यमेन सह ततं परिधिं वयिष्यन् वसिष्ठोऽप्सरसः परि जज्ञे स सर्वैस्सेवनीयोऽस्ति ॥१२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सः) (प्रकेतः) प्रकृष्टप्रज्ञः (उभयस्य) जन्मद्वयस्य (प्रविद्वान्) प्रकृष्टो विद्वान् (सहस्रदानः) असंख्यप्रदः (उत) (वा) (सदानः) दानेन सह वर्त्तमानः (यमेन) वायुना विद्युता वा सह (ततम्) व्याप्तम् (परिधिम्) (वयिष्यन्) व्ययं करिष्यन् (अप्सरसः) अन्तरिक्षचराद्वायोः (परि) सर्वतः (जज्ञे) जायते (वसिष्ठः) अतिशयेन वसुमान् ॥१२॥
भावार्थभाषाः - यस्य मनुष्यस्य मातुः पितुरादिमं जन्म द्वितीयमाचार्याद्विद्यायाः सकाशाज्जन्म भवति स एवाऽऽकाशस्थपदार्थानां वेत्ता प्रादुर्भूतः पूर्णो विद्वानतुलसुखप्रदो भवति ॥१२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - ज्या माणसाचा प्रथम जन्म माता-पिता यांच्याद्वारे होतो, दुसरा जन्म आचार्याकडून विद्येद्वारे होतो तोच अवकाशातील पदार्थांचा जाणकार असून पूर्ण विद्वान व अतुल सुख देणारा असतो. ॥ १२ ॥