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अ॒भी ष॒तस्तदा भ॒रेन्द्र॒ ज्यायः॒ कनी॑यसः। पु॒रु॒वसु॒र्हि म॑घवन्त्स॒नादसि॒ भरे॑भरे च॒ हव्यः॑ ॥२४॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

abhī ṣatas tad ā bharendra jyāyaḥ kanīyasaḥ | purūvasur hi maghavan sanād asi bhare-bhare ca havyaḥ ||

पद पाठ

अ॒भि। स॒तः। तत्। आ। भ॒र॒। इन्द्र॑। ज्यायः॑। कनी॑यसः। पु॒रु॒ऽवसुः॑। हि। म॒घ॒ऽव॒न्। स॒नात्। अ॒सि॒। भरे॑ऽभरे। च॒। हव्यः॑ ॥२४॥

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:32» मन्त्र:24 | अष्टक:5» अध्याय:3» वर्ग:21» मन्त्र:4 | मण्डल:7» अनुवाक:2» मन्त्र:24


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वह परमेश्वर कैसा है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (मघवन्) सकलैश्वर्य और धनयुक्त (इन्द्र) साधारणतया ऐश्वर्ययुक्त ! (हि) जिससे आप (भरेभरे) पालना करने योग्य व्यवहार में (सनात्) सनातन (हव्यः) स्तुति करने योग्य (पुरुवसुः) बहुतों के वसानेवाले (असि) हैं इससे (सतः) विद्यमान (तत्) उस चेतन ब्रह्म (कनीयसः) अतीव कनिष्ठ के (ज्यायः) अत्यन्त ज्येष्ठ प्रशंसनीय ब्रह्म को (भरे) पालनीय व्यवहार में (च) भी (आ, अभि, भर) सब ओर से धारण करो ॥२४॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जो परमात्मा अणु से अणु, सूक्ष्म से सूक्ष्म, बड़े से बड़ा सनातन सर्वाधार सर्वव्यापक सब की उपासना करने योग्य है, उसी का आश्रय सब करें ॥२४॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः स परमेश्वरः कीदृशोऽस्तीत्याह ॥

अन्वय:

हे मघवन्निन्द्र ! हि यतस्त्वं भरेभरे सनाद्धव्यः पुरुवसुरसि तस्मात्सतस्तत्कनीयसो ज्यायो ब्रह्म भरेभरे चाऽभि भर ॥२४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अभि) अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (सतः) विद्यमानस्य (तत्) चेतनं ब्रह्म (आ) (भर) (इन्द्र) ऐश्वर्ययुक्तजीव (ज्यायः) अतिशयेन ज्येष्ठम् (कनीयसः) अतिशयेन कनिष्ठात् (पुरुवसुः) पुरूणां बहूनां वासयिता (हि) यतः (मघवन्) सकलैश्वर्यधनयुक्त (सनात्) सनातन (असि) (भरेभरे) पालनीये व्यवहारे (च) (हव्यः) स्तोतुमर्हः ॥२४॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या ! यः परमात्मा अणोरणीयान् महतो महीयान् सनातनः सर्वाधारः सर्वव्यापकस्सर्वैरुपासनीयोऽस्ति तदाऽऽश्रयमेव सर्वे कुर्वन्तु ॥२४॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो! जो परमात्मा अणुहून अणू, सूक्ष्माहून सूक्ष्म, मोठ्याहून मोठा, सनातन, सर्वाधार, सर्व व्यापक, सर्वांनी उपासना करण्यायोग्य आहे त्याचाच सर्वांनी आश्रय घ्यावा. ॥ २४ ॥