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त॒रणि॒रित्सि॑षासति॒ वाजं॒ पुरं॑ध्या यु॒जा। आ व॒ इन्द्रं॑ पुरुहू॒तं न॑मे गि॒रा ने॒मिं तष्टे॑व सु॒द्र्व॑म् ॥२०॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

taraṇir it siṣāsati vājam puraṁdhyā yujā | ā va indram puruhūtaṁ name girā nemiṁ taṣṭeva sudrvam ||

पद पाठ

त॒रणिः॑। इत्। सि॒सा॒स॒ति॒। वाज॑म्। पुर॑म्ऽध्या। यु॒जा। आ। वः॒। इन्द्र॑म्। पु॒रु॒ऽहू॒तम्। न॒मे॒। गि॒रा। ने॒मिम्। तष्टा॑ऽइव। सु॒ऽद्र्व॑म् ॥२०॥

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:32» मन्त्र:20 | अष्टक:5» अध्याय:3» वर्ग:20» मन्त्र:5 | मण्डल:7» अनुवाक:2» मन्त्र:20


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर राजा और प्रजाजन परस्पर कैसे वर्तें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - जो (तरणिः) तारनेवाला (इत्) ही राजा (युजा) योगयुक्त (पुरन्ध्या) बहुत अर्थों को धारण करनेवाली बुद्धि से (वाजम्) धन वा विज्ञान को (सिषासति) अच्छे प्रकार बाँटने की इच्छा करता है उस (वः) तुम्हारे (पुरुहूतम्) बहुतों से स्तुति को पाये हुए (इन्द्रम्) परमैश्वर्य्यवान् को (सुद्रवम्) अच्छे प्रकार दौड़नेवाले (नेमिम्) पहिये को (तष्टेव) बढ़ई जैसे, वैसे (गिरा) वाणी से (आ, नमे) अच्छे प्रकार नमता हूँ ॥२०॥
भावार्थभाषाः - जो राजा पूर्ण विद्या और विनय तथा धर्मयुक्त व्यवहार से सत्य और असत्य को अलग कर न्याय करता है, उसको हम सब लोग नमते हैं, जैसे बढ़ई रथादि को बनाता है, वैसे हम लोग सब कामों को रचें ॥२०॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुना राजप्रजाजनाः परस्परं कथं वर्तेरन्नित्याह ॥

अन्वय:

यस्तरणिरिद्राजा युजा पुरन्ध्या वाजं सिषासति तं वः पुरहूतमिन्द्रं सुद्रवं नेमिं तष्टेव गिरा आ नमे ॥२०॥

पदार्थान्वयभाषाः - (तरणिः) तारकः (इत्) एव (सिषासति) सम्भक्तुमिच्छति (वाजम्) धनं विज्ञानं वा (पुरन्ध्या) या पुरूनर्थान् दधाति तया प्रज्ञया (युजा) योगयुक्तया (आ) (वः) युष्माकम् (इन्द्रम्) परमैश्वर्यम् (पुरुहूतम्) बहुभिः स्तुतम् (नमे) नमामि (गिरा) वाण्या (नेमिम्) चक्रम् (तष्टेव) तक्षेव (सुद्रवम्) यः सुष्ठु द्रवति गच्छति धावति तम् ॥२०॥
भावार्थभाषाः - यो राजा पूर्णाभ्यां विद्याविनयाभ्यां धर्म्येण च सत्यासत्ये विभज्य न्यायं करोति तं वयं सर्वे नमेम यथा तक्षा रथादिकं रचयति तथैव वयं सर्वाणि कार्याणि रचयेम ॥२०॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जो राजा पूर्ण विद्या व विनय आणि धर्मयुक्त व्यवहाराने सत्य असत्याला पृथक करून न्याय करतो त्याला आम्ही वंदन करतो. जसे सुतार रथ इत्यादी तयार करतो तसे आम्ही सर्व काम करावे. ॥ २० ॥