वांछित मन्त्र चुनें

नकिः॑ सु॒दासो॒ रथं॒ पर्या॑स॒ न री॑रमत्। इन्द्रो॒ यस्या॑वि॒ता यस्य॑ म॒रुतो॒ गम॒त्स गोम॑ति व्र॒जे ॥१०॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

nakiḥ sudāso ratham pary āsa na rīramat | indro yasyāvitā yasya maruto gamat sa gomati vraje ||

पद पाठ

नकिः॑। सु॒ऽदासः॑। रथ॑म्। परि॑। आ॒स॒। न। री॒र॒म॒त्। इन्द्रः॑। यस्य॑। अ॒वि॒ता। यस्य॑। म॒रुतः॑। गम॑त्। सः। गोऽम॑ति। व्र॒जे ॥१०॥

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:32» मन्त्र:10 | अष्टक:5» अध्याय:3» वर्ग:18» मन्त्र:5 | मण्डल:7» अनुवाक:2» मन्त्र:10


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर किसका किससे क्या हो, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यस्य) जिसका (इन्द्रः) दुष्टों को विदीर्ण करनेवाला (अविता) रक्षक (गमत्) जाता है वा (यस्य) जिसके (मरुतः) प्राण के मनुष्य रक्षा करनेवाले हैं जो (गोमति) जिसमें बहुत सी गौयें विद्यमान और (व्रजे) जिसमें जाते हैं उस स्थान में जाता है, जिसका दुष्टों का विदीर्ण करनेवाला रक्षक नहीं वह (सुदासः) श्रेष्ठ सेवक वा दोनोंवाला जन (रथम्) रथ को (नकिः) नहीं (परि, आस) सब ओर से अलग करता और (सः) वह (न) नहीं (रीरमत्) दूसरों को रमाता है ॥१०॥
भावार्थभाषाः - यदि राजा प्रजा का रक्षक न हो तो किसी को सुख न हो ॥१०॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः कस्य केन किं स्यादित्याह ॥

अन्वय:

यस्येन्द्रोऽविता गमद्यस्य मरुतो रक्षकाः सन्ति गोमति व्रजे गमत् यस्येन्द्रो रक्षिता नास्ति स सुदासो रथं नकिः पर्यास स न रीरमत् ॥१०॥

पदार्थान्वयभाषाः - (नकिः) (सुदासः) श्रेष्ठा दासाः सेवका दानानि वा यस्य सः (रथम्) (परि) सर्वतः (आस) अस्यति (न) निषेधे (रीरमत्) रमयति (इन्द्रः) दुष्टानां विदारकः (यस्य) (अविता) रक्षकः (यस्य) (मरुतः) प्राणा इव मनुष्याः (गमत्) गच्छति (सः) (गोमति) गावो बहवो धेनवो विद्यन्ते यस्मिँस्तस्मिन् (व्रजे) व्रजन्ति यस्मिँस्तस्मिन् स्थाने ॥१०॥
भावार्थभाषाः - यदि राजा प्रजाया रक्षको न स्यात्तर्हि कस्यापि सुखं न भवेत् ॥१०॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जर राजा प्रजेचा रक्षक नसेल तर कुणीही सुख प्राप्त करू शकणार नाही. ॥ १० ॥