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ऊ॒र्ध्वास॒स्त्वान्विन्द॑वो॒ भुव॑न्द॒स्ममुप॒ द्यवि॑। सं ते॑ नमन्त कृ॒ष्टयः॑ ॥९॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ūrdhvāsas tvānv indavo bhuvan dasmam upa dyavi | saṁ te namanta kṛṣṭayaḥ ||

पद पाठ

ऊ॒र्ध्वासः॑। त्वा॒। अनु॑। इन्द॑वः। भुव॑न्। द॒स्मम्। उप॑। द्यवि॑। सम्। ते॒। न॒म॒न्त॒। कृ॒ष्टयः॑ ॥९॥

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:31» मन्त्र:9 | अष्टक:5» अध्याय:3» वर्ग:16» मन्त्र:3 | मण्डल:7» अनुवाक:2» मन्त्र:9


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर किस मनुष्य को सब नमते हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वान् ! जो (ऊर्ध्वासः) उत्कृष्ट (इन्दवः) ऐश्वर्ययुक्त आनन्दित (अनु, भुवन्) अनुकूल होते हैं (ते) वे (कृष्टयः) मनुष्य (उपद्यवि) समीपस्थ प्रकाशित वा अप्रकाशित विषय में (दस्मम्) शत्रुओं का उपक्षय विनाश करने (त्वा) आपको (सम्, नमन्त) अच्छे प्रकार नमते हैं ॥९॥
भावार्थभाषाः - जिस राजा के समीप में भद्र, धार्मिक जन हैं, उसकी नम्रता से सब प्रजा नम्र होती है ॥९॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः कं नरं सर्वे नमन्तीत्याह ॥

अन्वय:

हे विद्वन् ! य ऊर्ध्वास इन्दवोऽनु भुवँस्ते कृष्टयः उपद्यवि दस्मं त्वा सन्नमन्त ॥९॥

पदार्थान्वयभाषाः - (ऊर्ध्वासः) उत्कृष्टाः (त्वा) त्वाम् (अनु) (इन्दवः) ऐश्वर्ययुक्ता आनन्दिताः (भुवन्) भवन्ति (दस्मम्) (उप) (द्यवि) समीपस्थे प्रकाशितेऽप्रकाशिते वा (सम्) (ते) तव (नमन्त) नमन्ति (कृष्टयः) मनुष्याः ॥९॥
भावार्थभाषाः - यस्य राज्ञः समीपे भद्रा धार्मिका जनाः सन्ति तस्य विनयेन सर्वाः प्रजाः नम्रा भवन्ति ॥९॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - ज्या राजाजवळ धार्मिक सत्पुरुष असतात. त्या राजाच्या नम्रतेमुळे सर्व प्रजा नम्र होते. ॥ ९ ॥