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मा नो॑ नि॒दे च॒ वक्त॑वे॒ऽर्यो र॑न्धी॒ररा॑व्णे। त्वे अपि॒ क्रतु॒र्मम॑ ॥५॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

mā no nide ca vaktave ryo randhīr arāvṇe | tve api kratur mama ||

पद पाठ

मा। नः॒। नि॒दे। च॒। वक्त॑वे। अ॒र्यः। र॒न्धीः॒। अरा॑व्णे। त्वे इति॑। अपि॑। क्रतुः॑। मम॑ ॥५॥

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:31» मन्त्र:5 | अष्टक:5» अध्याय:3» वर्ग:15» मन्त्र:5 | मण्डल:7» अनुवाक:2» मन्त्र:5


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर राजा क्या करे, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे राजन् ! (अर्यः) स्वामी होते हुए जो (मम, त्वे) मेरी तुम्हारे बीच (क्रतुः) उत्तम बुद्धि है उसको (मा) मत (रन्धीः) नष्ट करो (अपि) किन्तु (नः) हमारे (वक्तवे) कहने योग्य (अराव्णे) न देनेवाले के लिये और (निदे) निन्दक के लिये (च) भी निरन्तर दण्ड देओ ॥५॥
भावार्थभाषाः - राजा सदैव विद्या, धर्म और सुशीलता बढ़वाने के लिये निन्दक, दुष्ट मनुष्यों को निवार के प्रजा को निरन्तर प्रसन्न करे ॥५॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुना राजा किं कुर्यादित्याह ॥

अन्वय:

हे राजन्नर्यस्त्वं यो मम त्वे क्रतुरस्ति तं मा रन्धीरपितु नो वक्तवे अराव्णे निदे च भृशं दण्डं दद्याः ॥५॥

पदार्थान्वयभाषाः - (मा) निषेधे (नः) अस्माकम् (निदे) निन्दकाय (च) (वक्तवे) वक्तव्याय (अर्यः) स्वामी सन् (रन्धीः) हिंस्याः (अराव्णे) अदात्रे (त्वे) त्वयि (अपि) (क्रतुः) प्रज्ञा (मम) ॥५॥
भावार्थभाषाः - राजा सदैव विद्याधर्मसुशीलतां वर्धयित्वा निन्दकारीन् दुष्टान् मनुष्यान्निवार्य्य प्रजाः सततं रञ्जयेत् ॥५॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - राजाने सदैव विद्या, धर्म, सुशीलता वाढविण्यासाठी निंदक व दुष्ट माणसांचे निवारण करून प्रजेला निरंतर सुखी व प्रसन्न करावे. ॥ ५ ॥