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प्र व॒ इन्द्रा॑य॒ माद॑नं॒ हर्य॑श्वाय गायत। सखा॑यः सोम॒पाव्ने॑ ॥१॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

pra va indrāya mādanaṁ haryaśvāya gāyata | sakhāyaḥ somapāvne ||

पद पाठ

प्र। वः॒। इन्द्रा॑य। माद॑नम्। हरि॑ऽअश्वाय। गा॒य॒त॒। सखा॑यः। सो॒म॒ऽपाव्ने॑ ॥१॥

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:31» मन्त्र:1 | अष्टक:5» अध्याय:3» वर्ग:15» मन्त्र:1 | मण्डल:7» अनुवाक:2» मन्त्र:1


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब बारह ऋचावाले इकतीसवें सूक्त का प्रारम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में मित्रों को मित्र के लिये क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (सखायः) मित्रो ! (वः) तुम्हारे (हर्यश्वाय) मनुष्य वा हरणशील घोड़े जिसके विद्यमान हैं उस (सोमपाव्ने) सोम पीनेवाले (इन्द्राय) परमैश्वर्यवान् के लिये (मादनम्) आनन्द तुम (प्र, गायत) अच्छे प्रकार गाओ ॥१॥
भावार्थभाषाः - जो मित्रजन अपने मित्रजनों को आनन्द उत्पन्न करते हैं, वे मित्र होते हैं ॥१॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ सखिभिर्मित्राय किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

अन्वय:

हे सखायो ! वो युष्माकं हर्यश्वाय सोमपाव्न इन्द्राय मादनं यूयं प्रगायत ॥१॥

पदार्थान्वयभाषाः - (प्र) (वः) युष्माकम् (इन्द्राय) परमैश्वर्याय (मादनम्) आनन्दनम् (हर्यश्वाय) हरयो मनुष्या हरणशीला वा अश्वा यस्य सः (गायत) प्रशंसत (सखायः) सुहृदः (सोमपाव्ने) यः सोमं पिबति तस्मै ॥१॥
भावार्थभाषाः - ये सखायः स्वसखीनामानन्दं जनयन्ति ते सखायो भवन्ति ॥१॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)

या सूक्तात इंद्र, विद्वान व राजा यांच्या कामाचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

भावार्थभाषाः - जे मित्र आपल्या मित्रांना आनंद देतात तेच (खरे) मित्र असतात. ॥ १ ॥