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तुभ्येदि॒मा सव॑ना शूर॒ विश्वा॒ तुभ्यं॒ ब्रह्मा॑णि॒ वर्ध॑ना कृणोमि। त्वं नृभि॒र्हव्यो॑ वि॒श्वधा॑सि ॥७॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tubhyed imā savanā śūra viśvā tubhyam brahmāṇi vardhanā kṛṇomi | tvaṁ nṛbhir havyo viśvadhāsi ||

पद पाठ

तुभ्य॑। इत्। इ॒मा। सव॑ना। शू॒र॒। विश्वा॑। तुभ्य॑म्। ब्रह्मा॑णि। वर्ध॑ना। कृ॒णो॒मि॒। त्वम्। नृऽभिः॑। हव्यः॑। वि॒श्वधा॑। अ॒सि॒ ॥७॥

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:22» मन्त्र:7 | अष्टक:5» अध्याय:3» वर्ग:6» मन्त्र:2 | मण्डल:7» अनुवाक:2» मन्त्र:7


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर सेनापतियों को क्या करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (शूर) निर्भयता से शत्रुजनों की हिंसा करनेवाले राजा वा सेनापति ! जो (विश्वधा) विश्व को धारण करनेवाले (त्वम्) आप (नृभिः) नायक मनुष्यों से (हव्यः) स्तुति वा ग्रहण करने योग्य (असि) हैं इससे (तुभ्य) तुम्हारे लिये (इत्) ही (इमा) यह (सवना) ओषधियों के बनाने वा प्रेरणाओं को (कृणोमि) करता हूँ और (तुभ्यम्) तुम्हारे लिये (विश्वा) समस्त (ब्रह्माणि) धन वा अन्नों और (वर्धना) उन्नति करनेवाले कर्मों को करता हूँ ॥७॥
भावार्थभाषाः - सेनाधिष्ठाता जन सेनास्थ योद्धा भृत्यजनों की अच्छे प्रकार परीक्षा कर अधिकार और कार्य्यों में नियुक्त करें, यथावत् उनकी पालना करके उत्तम शिक्षा से बढ़ावें ॥७॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्सेनाऽधिष्ठातृभिः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

अन्वय:

हे शूर राजन् सेनेश वा ! यो विश्वधास्त्वं नृभिर्हव्योऽसि तस्मात्तुभ्येदिमा सवना कृणोमि तुभ्यं विश्वा ब्रह्माणि वर्धना च कृणोमि ॥७॥

पदार्थान्वयभाषाः - (तुभ्य) तुभ्यम् (इत्) एव (इमा) इमानि (सवना) ओषधिनिर्माणानि प्रेरणानि वा (शूर) निर्भयतया शत्रूणां हिंसक (विश्वा) सर्वाणि (तुभ्यम्) (ब्रह्माणि) धनान्यन्नानि वा (वर्धना) उन्नतिकराणि कर्माणि (कृणोमि) करोमि (त्वम्) (नृभिः) नायकैर्मनुष्यैः (हव्यः) स्तोतुमादातुमर्हः (विश्वधा) यो विश्वं दधाति सः। अत्र छान्दसो वर्णलोप इति सलोपः। (असि) ॥७॥
भावार्थभाषाः - सेनाधिष्ठातारः सेनास्थान् योद्धॄन् भृत्यान् सुपरीक्ष्याऽधिकारेषु कार्येषु च नियोजयेयुस्तेषां यथावत्पालनं विधाय सुशिक्षया वर्धयेयुः ॥७॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - सेनापती इत्यादींनी सेनेतील योद्धे व सेवकांची चांगल्या प्रकारे परीक्षा करून अधिकार द्यावा व कार्यात नियुक्त करावे. त्यांचे पालन करून उत्तम शिक्षण देऊन उन्नती करावी. ॥ ७ ॥