वांछित मन्त्र चुनें

नरा॒शंस॑स्य महि॒मान॑मेषा॒मुप॑ स्तोषाम यज॒तस्य॑ य॒ज्ञैः। ये सु॒क्रत॑वः॒ शुच॑यो धियं॒धाः स्वद॑न्ति दे॒वा उ॒भया॑नि ह॒व्या ॥२॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

narāśaṁsasya mahimānam eṣām upa stoṣāma yajatasya yajñaiḥ | ye sukratavaḥ śucayo dhiyaṁdhāḥ svadanti devā ubhayāni havyā ||

पद पाठ

नरा॒शंस॑स्य। म॒हि॒मान॑म्। ए॒षा॒म्। उप॑। स्तो॒षा॒म॒। य॒ज॒तस्य॑। य॒ज्ञैः। ये। सु॒ऽक्रत॑वः। शुच॑यः। धि॒य॒म्ऽधाः। स्वद॑न्ति। दे॒वाः। उ॒भया॑नि। ह॒व्या ॥२॥

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:2» मन्त्र:2 | अष्टक:5» अध्याय:2» वर्ग:1» मन्त्र:2 | मण्डल:7» अनुवाक:1» मन्त्र:2


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्यों को किसका सेवन करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! (ये) जो (सुक्रतवः) उत्तम प्रज्ञावाले (शुचयः) पवित्र (धियन्धाः) उत्तम कर्मों के धारण करनेवाले (देवाः) विद्वान् लोग (उभयानि) शरीर और आत्मा के पुष्टिकारक (हव्या) भोजन के योग्य पदार्थों को (स्वदन्ति) अच्छे स्वादपूर्वक खाते और (यज्ञैः) सङ्गति के योग्य साधनों से (यजतस्य) सङ्ग करने योग्य (नराशंसस्य) मनुष्यों से प्रशंसा किये हुए तथा अन्न का भोग करनेवाले के (एषाम्) इनकी (महिमानम्) महिमा की हम लोग (उप, स्तोषाम) समीप प्रशंसा करें ॥२॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! तुम को चाहिये कि सदैव विद्वानों के अनुकरण से शरीर और आत्मा के बल को बढ़ानेवाले खानपानों का सेवन किया करो, जिससे तुम्हारी महिमा बढ़े ॥२॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्यैः किं सेवनीयमित्याह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! ये सुक्रतवः शुचयो धियन्धा देवा उभयानि हव्या स्वदन्ति यज्ञैर्यजतस्य नराशंसस्य भोगान्भुञ्जत एषां महिमानं वयमुप स्तोषाम ॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (नराशंसस्य) नरैराशंसितस्य (महिमानम्) (एषाम्) (उप) (स्तोषाम) प्रशंसेम (यजतस्य) सङ्गन्तव्यस्य (यज्ञैः) सङ्गन्तव्यैस्साधनैः (ये) (सुक्रतवः) उत्तमप्रज्ञाः (शुचयः) पवित्राः (धियन्धाः) उत्तमकर्मधराः (स्वदन्ति) सुस्वादमदन्ति (देवाः) विद्वांसः (उभयानि) शरीरात्मपुष्टिकराणि (हव्या) हव्यान्यत्तुमर्हाणि ॥२॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्याः ! सदैव विद्वदनुकरणेन शरीरात्मबलवर्धकान्यन्नपानानि सेवनीयानि येन युष्माकं महिमा वर्धेत ॥२॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो ! तुम्ही सदैव विद्वानांच्या अनुकरणाने शरीर व आत्म्याचे बल वाढविणाऱ्या अन्नपानाचे ग्रहण करा. ज्यामुळे तुमचा महिमा वाढेल. ॥ २ ॥