मा ते॑ अ॒स्यां स॑हसाव॒न्परि॑ष्टाव॒घाय॑ भूम हरिवः परा॒दै। त्राय॑स्व नोऽवृ॒केभि॒र्वरू॑थै॒स्तव॑ प्रि॒यासः॑ सू॒रिषु॑ स्याम ॥७॥
mā te asyāṁ sahasāvan pariṣṭāv aghāya bhūma harivaḥ parādai | trāyasva no vṛkebhir varūthais tava priyāsaḥ sūriṣu syāma ||
मा। ते॒। अ॒स्याम्। स॒ह॒सा॒ऽव॒न्। परि॑ष्टौ। अ॒घाय॑। भू॒म॒। ह॒रि॒ऽवः॒। प॒रा॒ऽदै। त्राय॑स्व। नः॒। अ॒वृ॒केभिः॑। वरू॑थैः। तव॑। प्रि॒यासः॑। सू॒रिषु॑। स्या॒म॒ ॥७॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर राजा और प्रजाजन परस्पर कैसे वर्त्तें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुना राजप्रजाजना अन्योऽन्यं कथं वर्त्तेरन्नित्याह ॥
हे हरिवः सहसावन् राजन्नस्यां परिष्टौ ते परादा अघाय वयं मा भूमाऽवृकेभिर्वरूथैर्नस्त्रायस्व यतो वयं तव सूरिषु प्रियासः स्याम ॥७॥