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आ प॒क्थासो॑ भला॒नसो॑ भन॒न्तालि॑नासो विषा॒णिनः॑ शि॒वासः॑। आ योऽन॑यत्सध॒मा आर्य॑स्य ग॒व्या तृत्सु॑भ्यो अजगन्यु॒धा नॄन् ॥७॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ā pakthāso bhalānaso bhanantālināso viṣāṇinaḥ śivāsaḥ | ā yo nayat sadhamā āryasya gavyā tṛtsubhyo ajagan yudhā nṝn ||

पद पाठ

आ। प॒क्थासः॑। भ॒ला॒नसः॑। भ॒न॒न्त॒। आ। अलि॑नासः। वि॒षा॒णिनः॑। शि॒वासः॑। आ। यः। अन॑यत्। स॒ध॒ऽमाः। आर्य॑स्य। ग॒व्या। तृत्सु॑ऽभ्यः। अ॒ज॒ग॒न्। यु॒धा। नॄन् ॥७॥

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:18» मन्त्र:7 | अष्टक:5» अध्याय:2» वर्ग:25» मन्त्र:2 | मण्डल:7» अनुवाक:2» मन्त्र:7


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर राजजन कैसे श्रेष्ठ हों, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे राजन् ! जो (पक्थासः) पाकविद्या में कुशल (भलानसः) सब ओर से कहने योग्य (अलिनासः) जिनकी सूभूषित नासिका (विषाणिनः) जिनके सींग के समान तीक्ष्ण नख विद्यमान (शिवासः) और जो मङ्गलकारी आपको (आ, भनन्त) अच्छे प्रकार उपदेश करें (तृत्सुभ्यः) हिंसकों से (युधा) युद्ध से (नॄन्) मनुष्यों को (आ, अजगन्) प्राप्त हों (यः) जो (सधमाः) समान स्थान में मानते हुए (आर्यस्य) उत्तम जन के (गव्या) उत्तम वाणी में प्रसिद्ध हुओं को (आ, अनयत्) अच्छे प्रकार पहुँचाता है, उन सब की आप उत्तमता से रक्षा करो ॥७॥
भावार्थभाषाः - हे राजन् ! जो तपस्वी पुरुषार्थी वक्ता जन उत्तम रूपवाले मङ्गल जिनके आचरण युद्ध विद्या में कुशल आर्यजन आपको जिस-जिस का उपदेश दें, उस-उस को अप्रमत्त होते हुए सदा ठानो अर्थात् सर्वदैव उसका आचरण करो ॥७॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुना राजजनाः कीदृशा वराः स्युरित्याह ॥

अन्वय:

हे राजन् ! ये पक्थासो भलानसोऽलिनासो विषाणिनः शिवासो भवन्तं प्रत्याभनन्त तृत्सुभ्यो युधा नॄनाजगन् यः सधमा आर्यस्य गव्याऽऽनयत्तान् सर्वान् सुरक्ष ॥७॥

पदार्थान्वयभाषाः - (आ) समन्तात् (पक्थासः) पाकविद्याकुशलाः परिपक्वज्ञाना वा (भलानसः) भलाः परिभाषणीया नासिका येषान्ते (भनन्त) भनन्तूपदिशन्तु (आ) (अलिनासः) अलिनाः सुभूषिता नासिका येषान्ते (विषाणिनः) विषाणमिव तीक्ष्णा हस्ते नखा येषान्ते (शिवासः) मङ्गलकारिणः (आ) (यः) (अनयत्) नयति (सधमाः) समानस्थाने मन्यमानः (आर्यस्य) उत्तमजनस्य (गव्या) गव्यानि सुवाचि भवानि (तृत्सुभ्यः) हिंसकेभ्यः (अजगन्) गच्छन्तु (युधा) युद्धेन (नॄन्) मनुष्यान् ॥७॥
भावार्थभाषाः - हे राजन् ! ये तपस्विनः पुरुषार्थिनो वक्तारः सुरूपा मङ्गलाचारा युद्धविद्याकुशला आर्या जना भवन्तं यद्यदुपदिशेयुस्तत्तदप्रमत्तः सन् सदाऽनुतिष्ठ ॥७॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे राजा ! जे तपस्वी पुरुषार्थी वक्ते, स्वरूपवान उत्तम आचरणयुक्त, युद्धविद्येत कुशल आर्य लोक तुला जो जो उपदेश करतात त्या त्याप्रमाणे तू प्रमत्त न होता आचरण कर. ॥ ७ ॥