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येषा॒मिळा॑ घृ॒तह॑स्ता दुरो॒ण आँ अपि॑ प्रा॒ता नि॒षीद॑ति। ताँस्त्रा॑यस्व सहस्य द्रु॒हो नि॒दो यच्छा॑ नः॒ शर्म॑ दीर्घ॒श्रुत् ॥८॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yeṣām iḻā ghṛtahastā duroṇa ām̐ api prātā niṣīdati | tām̐s trāyasva sahasya druho nido yacchā naḥ śarma dīrghaśrut ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

येषा॑म्। इळा॑। घृ॒तऽह॑स्ता। दु॒रो॒णे। आ। अपि॑। प्रा॒ता। नि॒ऽसीद॑ति। तान्। त्रा॒य॒स्व॒। स॒ह॒स्य॒। द्रु॒हः। नि॒दः। यच्छ॑। नः॒। शर्म॑। दी॒र्घ॒ऽश्रुत् ॥८॥

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:16» मन्त्र:8 | अष्टक:5» अध्याय:2» वर्ग:22» मन्त्र:2 | मण्डल:7» अनुवाक:1» मन्त्र:8


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

राजा को किनका पालन वा किनको दण्ड देना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (सहस्य) बल से युक्त राजन् ! (येषाम्) जिन के (दुरोणे) घर में (घृतहस्ता) हाथ में घी लेनेवाली के तुल्य (प्राता) व्यापक (इळा) प्रशंसा योग्य वाणी (आ, निषीदति) अच्छे प्रकार निरन्तर स्थिर होती (तान्) उनकी आप (त्रायस्व) रक्षा कीजिये (दीर्घश्रुत्) दीर्घ काल तक सुननेवाले आप (नः) हमारे (शर्म) घर को (यच्छ) ग्रहण कीजिये जो (द्रुहः) द्रोही (निदः) निन्दक हैं, उनको (अपि) भी अच्छे प्रकार ग्रहण कीजिये ॥८॥
भावार्थभाषाः - हे राजन् ! जो सत्यवाणीवाले, वेदज्ञाता हों, उनको नित्य सुख दीजिये और जो द्रोहादि दोषयुक्त आप्तों के निन्दक हैं, उनको शीघ्र दण्ड दीजिये ॥८॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

राज्ञा के पालनीया दण्डनीयाश्च सन्तीत्याह ॥

अन्वय:

हे सहस्य ! येषां दुरोणे घृतहस्ता प्रातेळा आ निषीदति ताँस्त्वं त्रायस्व दीर्घश्रुत्त्वं नः शर्म यच्छ ये द्रुहो निदः सन्ति तानप्यायच्छ ॥८॥

पदार्थान्वयभाषाः - (येषाम्) (इळा) प्रशंसनीया वाक् (घृतहस्ता) घृतं हस्ते गृह्यते यया सा (दुरोणे) गृहे (आ) (अपि) (प्राता) व्यापिका (निषीदति) (तान्) (त्रायस्व) (सहस्य) सहसा बलेन युक्त (द्रुहः) द्रोग्धॄन् (निदः) निन्दकान् (यच्छा) निगृह्ळीहि। अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (नः) अस्माकम् (शर्म) गृहम् (दीर्घश्रुत्) यो दीर्घं कालं शृणोति ॥८॥
भावार्थभाषाः - हे राजन् ! ये सत्यवाचो वेदविदः स्युस्तेभ्यो नित्यं सुखं प्रयच्छ ये च द्रोहादिदोषयुक्ता आप्तनिन्दकाः स्युस्तान् भृशं दण्डय ॥८॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे राजा! जे सत्यवचनी वेदज्ञाते असतील त्यांना सदैव सुखी कर व जे द्रोह इत्यादी दोषांनी युक्त, आप्त विद्वानांचे निंदक असतील त्यांना तात्काळ दंड दे ॥ ८ ॥