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देवता: अग्निः ऋषि: वसिष्ठः छन्द: गायत्री स्वर: षड्जः

यः पञ्च॑ चर्ष॒णीर॒भि नि॑ष॒साद॒ दमे॑दमे। क॒विर्गृ॒हप॑ति॒र्युवा॑ ॥२॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yaḥ pañca carṣaṇīr abhi niṣasāda dame-dame | kavir gṛhapatir yuvā ||

पद पाठ

यः। पञ्च॑। च॒र्ष॒णीः। अ॒भि। नि॒ऽस॒साद॑। दमे॑ऽदमे। क॒विः। गृ॒हऽप॑तिः। युवा॑ ॥२॥

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:15» मन्त्र:2 | अष्टक:5» अध्याय:2» वर्ग:18» मन्त्र:2 | मण्डल:7» अनुवाक:1» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वे संन्यासी और गृहस्थ परस्पर कैसे वर्त्तें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) जो (कविः) उत्तम ज्ञान को प्राप्त हुआ संन्यासी (दमेदमे) घर-घर में (पञ्च) पाँच (चर्षणीः) मनुष्यों वा प्राणों को (अभि, निषसाद) स्थिर करे उसका (युवा) पूर्ण ब्रह्मचर्य्य के साथ वर्त्तमान (गृहपतिः) घर का रक्षक युवा पुरुष निरन्तर सत्कार करे ॥२॥
भावार्थभाषाः - संन्यासी जन सदा सब जगह भ्रमण करे और गृहस्थ इस विरक्त का सत्कार करे और इससे उपदेश सुने ॥२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तौ यतिगृहस्थौ परस्परं कथं वर्तेयातामित्याह ॥

अन्वय:

यः कविरतिथिर्दमेदमे पञ्च चर्षणीरभिनिषसाद तं युवा गृहपतिः सततं सत्कुर्यात् ॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) (पञ्च) (चर्षणीः) मनुष्यान् (अभि) आभिमुख्ये (निषसाद) निषीदेत् (दमेदमे) गृहेगृहे (कविः) जातप्रज्ञः (गृहपतिः) गृहस्य पालकः (युवा) पूर्णेन ब्रह्मचर्येण युवावस्थां प्राप्य कृतविवाहः ॥२॥
भावार्थभाषाः - यतिः सदा सर्वत्र भ्रमणं कुर्याद्गृहस्थश्चैतं सदैव सत्कुर्यादत उपदेशाञ्छृणुयात् ॥२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - संन्यासी लोकांनी सदैव सर्वत्र भ्रमण करावे व गृहस्थांनी या विरक्तांचा सत्कार करावा व त्यांचे उपदेश ऐकावेत. ॥ २ ॥