त्वं नः॑ पा॒ह्यंह॑सो॒ दोषा॑वस्तरघाय॒तः। दिवा॒ नक्त॑मदाभ्य ॥१५॥
tvaṁ naḥ pāhy aṁhaso doṣāvastar aghāyataḥ | divā naktam adābhya ||
त्वम्। नः॒। पा॒हि॒। अंह॑सः। दोषा॑ऽवस्तः। अ॒घ॒ऽय॒तः। दिवा॑। नक्त॑म्। अ॒दा॒भ्य॒ ॥१५॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर राणी राजा, प्रजा-जनों के प्रति कैसे वर्तें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुना राजानौ प्रजाः प्रति कथं वर्तेयातामित्याह ॥
हे अदाभ्य राजन् ! त्वं दोषावस्तरघायतो दिवानक्तमंहसश्च नः पाहि ॥१५॥