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त्वं नः॑ पा॒ह्यंह॑सो॒ दोषा॑वस्तरघाय॒तः। दिवा॒ नक्त॑मदाभ्य ॥१५॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tvaṁ naḥ pāhy aṁhaso doṣāvastar aghāyataḥ | divā naktam adābhya ||

पद पाठ

त्वम्। नः॒। पा॒हि॒। अंह॑सः। दोषा॑ऽवस्तः। अ॒घ॒ऽय॒तः। दिवा॑। नक्त॑म्। अ॒दा॒भ्य॒ ॥१५॥

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:15» मन्त्र:15 | अष्टक:5» अध्याय:2» वर्ग:20» मन्त्र:5 | मण्डल:7» अनुवाक:1» मन्त्र:15


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर राणी राजा, प्रजा-जनों के प्रति कैसे वर्तें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अदाभ्य) रक्षा करने योग्य राजन् ! (त्वम्) आप (दोषावस्तः) दिन-रात (अघायतः) अपने को पाप चाहते हुए दुष्ट के सङ्ग से और (दिवानक्तम्) रात्रि दिन सब समय में (अंहसः) अपराध से (नः) हमको आप (पाहि) रक्षित कीजिये, बचाइये ॥१५॥
भावार्थभाषाः - जैसे राजा पुरुषों की निरन्तर रक्षा करे, वैसे राणी प्रजा की स्त्रियों की नित्य रक्षा करे ॥१५॥ इस सूक्त में अग्नि के दृष्टान्त से राजा और रानी के कृत्यों का वर्णन करने से इस सूक्त की इससे पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह पन्द्रहवाँ सूक्त और बीसवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुना राजानौ प्रजाः प्रति कथं वर्तेयातामित्याह ॥

अन्वय:

हे अदाभ्य राजन् ! त्वं दोषावस्तरघायतो दिवानक्तमंहसश्च नः पाहि ॥१५॥

पदार्थान्वयभाषाः - (त्वम्) (नः) अस्मान् (पाहि) (अंहसः) अपराधात् (दोषावस्तः) अहर्निशम् (अघायतः) आत्मनोऽघमिच्छतः सङ्गात् (दिवा) दिनम् (नक्तम्) रात्रिम् (अदाभ्य) अहिंसनीय ॥१५॥
भावार्थभाषाः - यथा राजा पुरुषान् सततं रक्षेत्तथा राज्ञी प्रजास्थानारीर्नित्यं पालयेदिति ॥१५॥ अत्राऽग्निदृष्टान्तेन राजराज्ञिकृत्यवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इति पञ्चदशं सूक्तं विंशो वर्गश्च समाप्तः ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जेथे राजा पुरुषांचे निरंतर रक्षण करतो, तेथे राणीने स्त्रियांचे नित्य रक्षण करावे. ॥ १५ ॥