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अ॒ग्नी रक्षां॑सि सेधति शु॒क्रशो॑चि॒रम॑र्त्यः। शुचिः॑ पाव॒क ईड्यः॑ ॥१०॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

agnī rakṣāṁsi sedhati śukraśocir amartyaḥ | śuciḥ pāvaka īḍyaḥ ||

पद पाठ

अ॒ग्निः। रक्षां॑सि। से॒ध॒ति॒। शु॒क्रऽशो॑चिः। अम॑र्त्यः। शुचिः॑। पा॒व॒कः। ईड्यः॑ ॥१०॥

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:15» मन्त्र:10 | अष्टक:5» अध्याय:2» वर्ग:19» मन्त्र:5 | मण्डल:7» अनुवाक:1» मन्त्र:10


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - जो (शुक्रशोचिः) शुद्ध तेजस्वी (अमर्त्यः) साधारण मनुष्यपन से रहित (शुचिः) पवित्र (पावकः) शुद्ध पवित्र करनेवाला (ईड्यः) स्तुति करने वा खोजने चाहने योग्य (अग्निः) अग्नि के तुल्य राजा वा सेनाधीश (रक्षांसि) रक्षा करने योग्य कार्यों को (सेधति) सिद्ध करे, वह कीर्तिवाला होता है ॥१०॥
भावार्थभाषाः - जैसे राजा अन्याय का निवारण कर न्याय का प्रकाश करता है, वैसे विद्युत् दरिद्रता का विनाश कर लक्ष्मी को प्रकट करता है ॥१०॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

यः शुक्रशोचिरमर्त्यः शुचिः पावक ईड्योऽग्निरिव रक्षांसि सेधति स कीर्त्तिमान् भवति ॥१०॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अग्निः) अग्निरिव राजा सेनेशो वा (रक्षांसि) रक्षयितव्यानि (सेधति) साधयति (शुक्रशोचिः) शुद्धतेजस्कः (अमर्त्यः) मर्त्यधर्मरहितः (शुचिः) पवित्रः (पावकः) शोधकः पवित्रकर्त्ता (ईड्यः) स्तोतुमन्वेष्टुं वा योग्यः ॥१०॥
भावार्थभाषाः - यथा राजाऽन्यायं निवार्य्य न्यायं प्रकाशयति तथैव विद्युद्दारिद्र्यं विनाशय लक्ष्मीं जनयति ॥१०॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जसा राजा अन्यायाचे निवारण करून न्याय करतो तसे विद्युत दारिद्र्याचा नाश करून लक्ष्मी प्राप्त करवून देते. ॥ १० ॥