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त्वं वि॑ष्णो सुम॒तिं वि॒श्वज॑न्या॒मप्र॑युतामेवयावो म॒तिं दा॑: । पर्चो॒ यथा॑ नः सुवि॒तस्य॒ भूरे॒रश्वा॑वतः पुरुश्च॒न्द्रस्य॑ रा॒यः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tvaṁ viṣṇo sumatiṁ viśvajanyām aprayutām evayāvo matiṁ dāḥ | parco yathā naḥ suvitasya bhūrer aśvāvataḥ puruścandrasya rāyaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

त्वम् । वि॒ष्णो॒ इति॑ । सु॒ऽम॒तिम् । वि॒श्वऽज॑न्याम् । अप्र॑ऽयुताम् । ए॒व॒ऽया॒वः॒ । म॒तिम् । दाः॒ । पर्चः॑ । यथा॑ । नः॒ । सु॒वि॒तस्य॑ । भूरेः॑ । अश्व॑ऽवतः । पु॒रु॒ऽच॒न्द्रस्य॑ । रा॒यः ॥ ७.१००.२

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:100» मन्त्र:2 | अष्टक:5» अध्याय:6» वर्ग:25» मन्त्र:2 | मण्डल:7» अनुवाक:6» मन्त्र:2


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (एवयावः) हे सर्वकामनाप्रद (विष्णो) व्यापक परमेश्वर ! (त्वं) आप हमें (विश्वजन्यां) सब संसार का हित करनेवाली (अप्रयुताम्) दोषरहित (सुमतिं) नीति (दाः) दें और (पुरुश्चन्द्रस्य) सब प्रकार के ऐश्वर्यों का (रायः) साधन जो धन है और (भूरेः, अश्वावतः) जिसमें अनेक प्रकार की शक्तियें हैं और जो (सुवितस्य) सुविधा से प्राप्त हो सकता है, (यथा) जिस प्रकार (पर्चः) उसकी प्राप्ति हो, वैसी (नः) हमको आप बुद्धि दें ॥२॥
भावार्थभाषाः - शुभ नीति और सुनीति उसका नाम है, जिससे संसार भर का कल्याण हो। इस मन्त्र में परमात्मा ने इस नीति के उत्पन्न करने के लिये जिज्ञासु द्वारा प्रार्थना कथन करके उपदेश किया है। वास्तव में शुभ नीति ही धर्म्म, देश और जाति की उन्नति का सर्वोपरि साधन है ॥२॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

ज्ञानयुक्त बुद्धि की याचना

पदार्थान्वयभाषाः - पदार्थ- हे (विष्णो) = व्यापक प्रभो ! (त्वे) = तू (विश्वजन्या) = सब जनों की हितकारिणी, (अप्रयुताम्) = सबके साथ मिली हुई, (सुमतिं मतिम्) = उत्तम ज्ञानयुक्त बुद्धि को (दाः) = दे। (यथा) = जिससे, (नः) = हमारे (सुवितस्य) = उत्तम रीति से प्राप्त (भूरेः अश्वावत:) = बहुत से अश्वों से युक्त, पुरुचन्द्रस्य बहुतों के आह्लादकारी (रायः) = ऐश्वर्य का (पर्चः) = सम्पर्क हो ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- मनुष्य परमात्मा से ज्ञानयुक्त बुद्धि की याचना किया करे। उत्तम बुद्धि के द्वारा श्रेष्ठ साधनों से उत्तम धन को प्राप्त करे। दान आदि से अन्य पात्रजनों को तृप्त व प्रसन्न करे। इससे स्वयं की अत्यन्त सन्तुष्टि मिलेगी।
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (एवयावः) हे सर्वप्रद ! (विष्णो) व्यापक ! (त्वम्) भवान् मह्यं (विश्वजन्याम्) विश्वजनहितां (अप्रयुताम्) दोषरहितां (सुमतिम्) नीतिं (दाः) दद्याः तथा (पुरुश्चन्द्रस्य) सर्वविधैश्वर्यस्य (रायः) साधनीभूतं धनम् (भूरेः, अश्वावतः) अनन्तशक्तिमत् (सुवितस्य) सुविद्यया लभ्यं (यथा) येन विधिना (पर्चः) प्राप्यते, तथैव बुद्धिम् (नः) अस्मभ्यं देहि ॥२॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Vishnu, lord omnipresent and omnificent, who fulfil the aspirations of all humanity, bless us with such intelligence, understanding and faith in values of pure and universal character by which we may achieve our target of untarnished happiness and plenty of universal wealth of honour, beauty and complete fulfilment of earthly ambition.