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देवता: अग्निः ऋषि: वसिष्ठः छन्द: त्रिष्टुप् स्वर: धैवतः

पा॒हि नो॑ अग्ने र॒क्षसो॒ अजु॑ष्टात्पा॒हि धू॒र्तेरर॑रुषो अघा॒योः। त्वा यु॒जा पृ॑तना॒यूँर॒भि ष्या॑म् ॥१३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

pāhi no agne rakṣaso ajuṣṭāt pāhi dhūrter araruṣo aghāyoḥ | tvā yujā pṛtanāyūm̐r abhi ṣyām ||

पद पाठ

पा॒हि। नः॒। अ॒ग्ने॒। र॒क्षसः॑। अजु॑ष्टात्। पा॒हि। धू॒र्तेः। अर॑रुषः। अ॒घ॒ऽयोः। त्वा। यु॒जा। पृ॒त॒ना॒ऽयून्। अ॒भि। स्या॒म् ॥१३॥

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:1» मन्त्र:13 | अष्टक:5» अध्याय:1» वर्ग:25» मन्त्र:3 | मण्डल:7» अनुवाक:1» मन्त्र:13


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

किस करके किससे किसकी रक्षा करनी चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) विद्युत् अग्नि के तुल्य वर्त्तमान राजन् या उपदेशक ! आप (नः) हमको (रक्षसः) दुष्टाचारी मनुष्यों से (पाहि) बचाइये। हमारी (अजुष्टात्) धर्म का सेवन न करते हुए अधर्मी (धूर्तेः) धूर्त (अररुषः) शीघ्र मारनेवाले (अघायोः) आत्मा को पाप की इच्छा करते हुए से (पाहि) रक्षा कीजिये (युजा) युक्त हुए (त्वा) तुम्हारे साथ वर्त्तमान मैं (पृतनायून्) सेनाओं को चाहते हुओं के (अभि, ष्याम्) सम्मुख होऊँ ॥१३॥
भावार्थभाषाः - वही राजा अध्यापक उपदेशक वा कर्म करनेहारा श्रेष्ठ होता है, जो आप धर्मात्मा होकर अन्यों को भी धार्मिक करे ॥१३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

केन कस्मात् के रक्षणीया इत्याह ॥

अन्वय:

हे अग्ने ! त्वं नो रक्षसः पाहि नोऽजुष्टाद्धूर्तेरररुषोऽघायोः पाहि त्वा युजा वर्त्तमानोऽहं पृतनायूनभि ष्याम् ॥१३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (पाहि) (नः) अस्मान् (अग्ने) विद्युदिव वर्त्तमान राजन्नुपदेशक वा (रक्षसः) दुष्टाचाराज्जनात् (अजुष्टात्) धर्म्ममसेवमानात् (पाहि) (धूर्तेः) धूर्त्तात् (अररुषः) भृशं हिंसकात् (अघायोः) आत्मनोऽघमिच्छतः (त्वा) त्वया। विभक्तिव्यत्ययः (युजा) युक्तेन (पृतनायून्) सेनां कामयमानान् (अभि) आभिमुख्ये (स्याम्) भवेयम् ॥१३॥
भावार्थभाषाः - स एव राजाऽध्यापक उपदेशकः कर्मकर्ता वा श्रेष्ठो भवति यः स्वयं धार्मिको भूत्वाऽन्यानपि धार्मिकान् कुर्यात् ॥१३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जो स्वतः धर्मात्मा बनून इतरांनाही धार्मिक बनवितो तोच राजा, अध्यापक, उपदेशक किंवा कर्मकर्ता श्रेष्ठ असतो. ॥ १३ ॥