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सोमा॑रुद्रा यु॒वमे॒तान्य॒स्मे विश्वा॑ त॒नूषु॑ भेष॒जानि॑ धत्तम्। अव॑ स्यतं मु॒ञ्चतं॒ यन्नो॒ अस्ति॑ त॒नूषु॑ ब॒द्धं कृ॒तमेनो॑ अ॒स्मत् ॥३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

somārudrā yuvam etāny asme viśvā tanūṣu bheṣajāni dhattam | ava syatam muñcataṁ yan no asti tanūṣu baddhaṁ kṛtam eno asmat ||

पद पाठ

सोमा॑रुद्रा। यु॒वम्। ए॒तानि॑। अ॒स्मे इति॑। विश्वा॑। त॒नूषु॑। भे॒ष॒जानि॑। ध॒त्त॒म्। अव॑। स्य॒त॒म्। मु॒ञ्चत॑म्। यत्। नः॒। अस्ति॑। त॒नूषु॑। ब॒द्धम्। कृ॒तम्। एनः॑। अ॒स्मत् ॥३॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:74» मन्त्र:3 | अष्टक:5» अध्याय:1» वर्ग:18» मन्त्र:3 | मण्डल:6» अनुवाक:6» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वे क्या करें, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (सोमारुद्रा) यज्ञ से शुद्ध किये हुए सोमलता और वायु के समान राजा और वैद्यो ! (युवम्) तुम (यत्) जो (नः) हमारे (तनूषु) शरीरों में (कृतम्) किया हुआ और (बद्धम्) लगा हुआ (एनः) कुपथ्यादि या अपराध (अस्ति) है उसे (अस्मत्) हम से (मुञ्चतम्) छुड़ाओ और हमारे रोगों को (अवस्यतम्) नष्ट करो तथा (अस्मे) हमारे (तनूषु) शरीरों में (विश्वा) समस्त (एतानि) ये (भेषजानि) औषधें (धत्तम्) स्थापन करो ॥३॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे राजन् ! आप वैद्यविद्या का प्रचार कर हमारे शरीरों को नीरोग कर और पुरुषार्थ में प्रवेश करके दुःखों को अलग कर अच्छे वैद्यों का सत्कार करो ॥३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तौ किं कुर्यातामित्याह ॥

अन्वय:

हे सोमारुद्रेव राजवैद्यौ ! युवं यन्नस्तनूषु कृतं बद्धमेनोऽस्ति तदस्मन्मुञ्च तमस्माकं रोगानव स्यतमस्मे तनूषु विश्वैतानि भेषजानि धत्तम् ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सोमारुद्रा) यज्ञशोधितौ सोमलतावायू इव राजवैद्यौ (युवम्) (एतानि) विषूच्यादिनिवारकानि (अस्मे) अस्माकम् (विश्वा) सर्वाणि (तनूषु) शरीरेषु (भेषजानि) औषधानि (धत्तम्) (अव) (स्यतम्) तनूकुरुतम् (मुञ्चतम्) मुञ्चेताम् (यत्) (नः) अस्माकम् (अस्ति) (तूनुषु) शरीरेषु (बद्धम्) लग्नम् (कृतम्) (एनः) कुपथ्यादिकमपराधं वा (अस्मत्) अस्माकं सकाशात् ॥३॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे राजन् ! भवान् वैद्यविद्यां प्रचार्य्यास्माकं शरीराण्यरोगानि कृत्वा पुरुषार्थे प्रवेशयित्वा दुःखानि वियोज्य सद्वैद्यान् सत्कुर्यात् ॥३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे राजा ! तू वैद्यक विद्येचा प्रचार करून आमचे शरीर निरोगी कर. पुरुषार्थाने दुःख दूर कर व चांगल्या वैद्यांचा सत्कार कर. ॥ ३ ॥