वांछित मन्त्र चुनें

प्र यद्वां॑ मित्रावरुणा स्पू॒र्धन्प्रि॒या धाम॑ यु॒वधि॑ता मि॒नन्ति॑। न ये दे॒वास॒ ओह॑सा॒ न मर्ता॒ अय॑ज्ञसाचो॒ अप्यो॒ न पु॒त्राः ॥९॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

pra yad vām mitrāvaruṇā spūrdhan priyā dhāma yuvadhitā minanti | na ye devāsa ohasā na martā ayajñasāco apyo na putrāḥ ||

पद पाठ

प्र। यत्। वा॒म्। मि॒त्रा॒व॒रु॒णा॒। स्पू॒र्धन्। प्रि॒या। धाम॑। यु॒वऽधि॑ता। मि॒नन्ति॑। न। ये। दे॒वासः॑। ओह॑सा। न। मर्ताः॑। अय॑ज्ञऽसाचः। अप्यः॑। न। पु॒त्राः ॥९॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:67» मन्त्र:9 | अष्टक:5» अध्याय:1» वर्ग:10» मन्त्र:4 | मण्डल:6» अनुवाक:6» मन्त्र:9


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

कौन विद्वानों के प्रिय वा अप्रिय होते हैं, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (मित्रावरुणा) प्राण और उदान के समान अध्यापक और उपदेशको ! (यत्) जो (स्पूर्द्धन्) स्पर्द्धा करते हुए जन (वाम्) तुम दोनों के (प्रिया) प्रिय (धाम) धाम जिनमें स्थापन करते हैं उन (युवधिता) तुम दोनों का हित करनेवालों को (न) न (प्र, मिनन्ति) नष्ट करते हैं वा (ये) जो (देवासः) विद्वान् जन (ओहसा) प्राप्तबल वा वेग से (अयज्ञसाचः) जो यज्ञ से सम्बन्ध नहीं करते वे (मर्त्ताः) मनुष्य (न) नहीं नष्ट करते हैं, वे (अप्यः) कर्मों में प्रसिद्ध के (न) समान और (पुत्राः) पुत्रों के समान होते हैं ॥९॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य अध्यापक और उपदेशकों का अप्रिय आचरण नहीं करते हैं, वे सत्पुत्रों के समान होते हैं और जो अप्रिय का आचरण करते हैं, वे शत्रुओं के तुल्य होते हैं ॥९॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

के विदुषां प्रिया अप्रिया वा भवन्तीत्याह ॥

अन्वय:

हे मित्रावरुणा ! यद्ये स्पूर्द्धन् वां प्रिया धाम युवधिता न प्रमिणन्ति ये देवास ओहसाऽयज्ञसाचो मर्त्ताश्च न मिनन्ति तेऽप्यो न पुत्रा इव जायन्ते ॥९॥

पदार्थान्वयभाषाः - (प्र) (यत्) ये (वाम्) युवयोः (मित्रावरुणा) प्राणोदानवद्वर्त्तमानौ (स्पूर्धन्) स्पर्द्धमानाः (प्रिया) प्रियाणि (धाम) दधति येषु तानि (युवधिता) युवयोर्हितानि (मिनन्ति) हिंसन्ति (न) निषेधे (ये) (देवासः) विद्वांसः (ओहसा) प्राप्तेन बलेन वेगन वा (न) निषेधे (मर्त्ताः) मनुष्याः (अयज्ञसाचः) ये यज्ञेन न सचन्ति सम्बध्नन्ति ते (अप्यः) अप्सु सत्कर्मसु भवः (न) इव (पुत्राः) ॥९॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्या अध्यापकोपदेशकानामप्रियं नाचरन्ति ते सत्पुत्रवद्भवन्ति ये चाऽप्रियमाचरन्ति ते शत्रुवज्जायन्ते ॥९॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे अध्यापक व उपदेशक यांच्याबरोबर प्रिय आचरण करतात ती सत्पुत्राप्रमाणे असतात व जी अप्रिय आचरण करतात ती शत्रूप्रमाणे असतात. ॥ ९ ॥