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अश्वा॒ न या वा॒जिना॑ पू॒तब॑न्धू ऋ॒ता यद्गर्भ॒मदि॑ति॒र्भर॑ध्यै। प्र या महि॑ म॒हान्ता॒ जाय॑माना घो॒रा मर्ता॑य रि॒पवे॒ नि दी॑धः ॥४॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

aśvā na yā vājinā pūtabandhū ṛtā yad garbham aditir bharadhyai | pra yā mahi mahāntā jāyamānā ghorā martāya ripave ni dīdhaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अश्वा॑। न। या। वा॒जिना॑। पू॒तब॑न्धू॒ इति॑ पू॒तऽब॑न्धू। ऋ॒ता। यत्। गर्भ॑म्। अदि॑तिः। भर॑ध्यै। प्र। या। महि॑। म॒हान्ता॑। जाय॑माना। घो॒रा। मर्ता॑य। रि॒पवे॑। नि। दी॒ध॒रिति॑ दीधः ॥४॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:67» मन्त्र:4 | अष्टक:5» अध्याय:1» वर्ग:9» मन्त्र:4 | मण्डल:6» अनुवाक:6» मन्त्र:4


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर सब मनुष्यों को कौन सत्कार करने योग्य हैं, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! (या) जो (अश्वा) घोड़े वा महाशय जनों के (न) समान (वाजिना) बहुत वेग वा विज्ञानयुक्त (पूतबन्धू) पवित्र बन्धुवाले (ऋता) सत्य आचार के रखनेवाले (अदितिः) माता के तुल्य (महि) महान् जन (यत्) जिस (गर्भम्) गर्भ को (भरध्यै) धारण करने को प्रवर्त्तमान वा (या) जो (महान्ता) महात्मा (जायमाना) उत्पन्न हुए (रिपवे, मर्त्ताय) शत्रुजन के लिये (घोरा) भयङ्कर (प्र, णि, दीधः) और कारागार में निरन्तर शत्रु जनों को डाल देते हैं, उनको अपने आत्मा के तुल्य सत्कार करो ॥४॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! जो कुलीन, जिनका महान् पक्ष, विद्वान् माता पिता से उत्पन्न हुए, उत्तम शिक्षायुक्त, महाशय, माता के तुल्य मनुष्यों पर कृपा करते, वा पढ़ाने और उपदेश करने से सब पर उपकार करते, तथा दुष्टों को रोकते हुए विद्वान् होते हैं, उन्हीं की सेवा, सङ्ग, उन्हीं से उपदेश और विद्या पढ़ना निरन्तर करो ॥४॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः सर्वैर्मनुष्यैः कौ पूजनीयावित्याह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! या अश्वा न वाजिना पूतबन्धू ऋतादितिरिव महि यद्गर्भं भरध्यै प्रवर्त्तमानौ या महान्ता जायमाना रिपवे मर्त्ताय घोरा प्र णि दीधस्तौ स्वात्मवत् सत्कुरुत ॥४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अश्वा) तुरङ्गौ महान्तौ जनौ वा (न) इव (या) यौ (वाजिना) बहुवेगविज्ञानयुक्तौ (पूतबन्धू) पूताः पवित्रा बन्धवो ययोस्तौ (ऋता) सत्याचारौ (यत्) यम् (गर्भम्) (अदितिः) माता (भरध्यै) भर्तुम् (प्र) (या) यौ (महि) (महान्ता) महान्तौ पूजनीयौ (जायमाना) उत्पद्यमानौ (घोरा) भयङ्करौ (मर्त्ताय) मनुष्याय (रिपवे) शत्रवे (नि) (दीधः) नितरां कारागारे निदधाते ॥४॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। हे मनुष्या ! ये कुलीना महापक्षा विद्वद्भ्यां मातापितृभ्यामुत्पन्नाः सुशिक्षिता महाशया मातृवज्जनाननुकम्पमाना अध्यापनोपदेशाभ्यां सर्वानुपकुर्वाणा दुष्टानां निरुन्धाना विद्वांसः स्युस्तेषामेव सेवा सङ्गस्तेभ्य एवोपदेशाऽध्ययनौ च सततं कुरुत ॥४॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! जे कुलीन, महान पक्षाचे, विद्वान माता-पिता यांच्याकडून उत्पन्न झालेले, उत्तम शिक्षण घेतलेले महाशय मातेप्रमाणे माणसांवर कृपा करतात किंवा अध्यापन व उपदेश करण्याने सर्वांवर उपकार करतात व दुष्टांना रोखत विद्वान होतात त्यांचीच सेवा, संग व निरंतर उपदेश व विद्याग्रहण चालू ठेवा. ॥ ४ ॥