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आ या॑तं मित्रावरुणा सुश॒स्त्युप॑ प्रि॒या नम॑सा हू॒यमा॑ना। सं याव॑प्नः॒स्थो अ॒पसे॑व॒ जना॑ञ्छ्रुधीय॒तश्चि॑द्यतथो महि॒त्वा ॥३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ā yātam mitrāvaruṇā suśasty upa priyā namasā hūyamānā | saṁ yāv apnaḥstho apaseva janāñ chrudhīyataś cid yatatho mahitvā ||

पद पाठ

आ। या॒त॒म्। मि॒त्रा॒व॒रु॒णा॒। सु॒ऽश॒स्ति। उप॑। प्रि॒या। नम॑सा। हू॒यमा॑ना। सम्। यौ। अ॒प्नः॒ऽस्थः। अ॒पसा॑ऽइव। जना॑न्। श्रु॒धि॒ऽय॒तः। चि॒त्। य॒त॒थः॒। म॒हि॒त्वा ॥३॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:67» मन्त्र:3 | अष्टक:5» अध्याय:1» वर्ग:9» मन्त्र:3 | मण्डल:6» अनुवाक:6» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर कौन निरन्तर सत्कार करने योग्य हैं, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (प्रिया) सब को तृप्त करनेवाले (मित्रावरुणा) प्राण और उदान के समान प्रिय पुरुषो ! (नमसा) सत्कार से (हूयमाना) बुलाते हुए तुम दोनों (जनान्) मनुष्य के (उप, आ, यातम्) समीप आओ तथा (सुशस्ति) सुन्दर प्रशंसा को प्राप्त होओ (यौ) जो (चित्) निश्चय से (महित्वा) बड़प्पन से (यतथः) यत्न करते हैं वा (श्रुधीयतः) अपने अन्न की इच्छा करते हैं, वे दोनों (अप्नःस्थः) सन्तानों में ठहरनेवाला (अपसेव) कर्म से जैसे वैसे हम लोगों को (सम्) प्राप्त होवें ॥३॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! तुम अध्यापक और उपदेशकों को सदा सत्कार से बुलाकर उनका सत्कार कर विद्या और सत्योपदेश को संसार के बीच विस्तारो। हे अध्यापक और उपदेशको ! तुम प्रयत्न से माता और पिता के समान मनुष्यों को उत्तम शिक्षा देकर विद्यावान् सर्वोपकार करनेवालों को सिद्ध करो ॥३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः कौ सततं सत्करणीयावित्याह ॥

अन्वय:

हे प्रिया मित्रावरुणा नमसा हूयमाना ! युवां जनानुपा यातं सुशस्ति प्राप्नुतं यौ चिन्महित्वा यतथश्श्रुधीयतस्तावप्नःस्थोऽपसेवास्माञ्जनान् समुपायातम् ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (आ) समन्तात् (यातम्) आगच्छतम् (मित्रावरुणा) प्राणोदानवत्प्रियौ (सुशस्ति) सुष्ठु प्रशंसनम् (उप) (प्रिया) यौ सर्वान् प्रीणीतस्तौ (नमसा) सत्कारेण (हूयमाना) आहूयमानौ (सम्) (यौ) (अप्नःस्थः) अपत्यस्थः (अपसेव) कर्मणेव (जनान्) (श्रुधीयतः) आत्मनः श्रुधिमन्नमिच्छतः (चित्) अपि (यतथः) (महित्वा) महिम्ना ॥३॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या ! यूयमध्यापकोपदेशकौ सदा सत्कारेणाहूय सम्पूज्य विद्यासत्योपदेशौ जगति प्रसारयत। हे अध्यापकोपदेशका ! यूयं प्रयत्नेन मातापितृवन्मनुष्यान् सुशिक्ष्य विद्यावतः सर्वोपकारकान् सम्पादयत ॥३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो ! तुम्ही अध्यापक व उपदेशकांचा सदैव सत्कार करून आमंत्रण देऊन सन्मान करा व विद्या आणि सत्योपदेश जगात प्रसारित करा. हे अध्यापक व उपदेशकांनो ! तुम्ही प्रयत्नपूर्वक माता व पिता यांच्याप्रमाणे माणसांना उत्तम शिक्षण देऊन विद्यावान व सर्वोपकारी बनवा. ॥ ३ ॥