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नास्य॑ व॒र्ता न त॑रु॒ता न्व॑स्ति॒ मरु॑तो॒ यमव॑थ॒ वाज॑सातौ। तो॒के वा॒ गोषु॒ तन॑ये॒ यम॒प्सु स व्र॒जं दर्ता॒ पार्ये॒ अध॒ द्योः ॥८॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

nāsya vartā na tarutā nv asti maruto yam avatha vājasātau | toke vā goṣu tanaye yam apsu sa vrajaṁ dartā pārye adha dyoḥ ||

पद पाठ

न। अस्य॑। व॒र्ता। न। त॒रु॒ता। नु। अ॒स्ति॒। मरु॑तः। यम्। अव॑थ। वाज॑ऽसातौ। तो॒के। वा॒। गोषु॑। तन॑ये। यम्। अ॒प्ऽसु। सः। व्र॒जम्। दर्ता॑। पार्ये॑। अध॑। द्योः ॥८॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:66» मन्त्र:8 | अष्टक:5» अध्याय:1» वर्ग:8» मन्त्र:3 | मण्डल:6» अनुवाक:6» मन्त्र:8


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

किन से रक्षा किये जाने पर भय नहीं है, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (मरुतः) विद्वानो ! तुम (वाजसातौ) अन्नादि पदार्थों के विभाग में (यम्) जिसको (गोषु) गौ आदि पशु वा पृथिवी विभागों वा (अप्सु) जलों वा (तोके) सन्तान (वा) वा (तनये) सुकुमार इन सब में (यम्) जिसकी (अवथ) रक्षा करते हो (अस्य) इस व्यवहार का कोई (वर्त्ता) वर्त्ताव करने और कोई (न) नहीं है और कोई (तरुता) उक्त व्यवहार का उल्लङ्घन करनेवाला (न) नहीं (अस्ति) है (सः) वह (अध) इसके अनन्तर (पार्य्ये) पार करने योग्य व्यवहार में (द्योः) प्रकाश के (व्रजम्) मेघ के समान शत्रुसेना को (दर्त्ता, नु) शीघ्र विदीर्ण करनेवाला है ॥८॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जिनके विद्वान् जन रक्षा करनेवाले हों, उनको कहीं से भय नहीं प्राप्त होता, जैसे सूर्य से वर्षा होकर जगत् निर्भय होता है, वैसे ही धार्मिक विद्वानों के सङ्ग से समस्त राज्य निर्भय होता है ॥८॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

कै रक्षणे कृते भयं न विद्यत इत्याह ॥

अन्वय:

हे मरुतो विद्वांसो ! यूयं वाजसातौ यं गोष्वप्सु तोके वा तनये यमवथास्य कोऽपि वर्त्ता नास्ति कोऽपि तरुता नास्ति सोऽध पार्य्ये द्योः व्रजमिव शत्रुसेनाया दर्त्ता न्वस्ति ॥८॥

पदार्थान्वयभाषाः - (न) (अस्य) (वर्त्ता) वर्त्तयिता (न) (तरुता) उल्लङ्घयिता (नु) सद्यः (अस्ति) (मरुतः) उत्तमा मनुष्याः (यम्) (अवथ) रक्षथ (वाजसातौ) (तोके) अपत्ये (वा) (गोषु) गवादिषु पशुषु पृथिवीविभागेषु वा (तनये) सुकुमारे (यम्) (अप्सु) उदकेषु (सः) (व्रजम्) मेघम् (दर्त्ता) विदारकः (पार्ये) पारयितव्ये (अध) अथ (द्योः) प्रकाशस्य ॥८॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या ! येषां विद्वांसो रक्षकाः स्युस्तेषां कुतश्चिद्भयं नाप्नोति यथा सूर्याद् वृष्टिर्भूत्वा जगन्निर्भयं जायते तथैव धार्मिकविद्वत्सङ्घात् सर्वं राष्ट्रमभयं भवति ॥८॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो ! विद्वान लोक ज्यांचे रक्षक असतात त्यांना कोणतेही भय नसते. जसे सूर्यामुळे वृष्टी होऊन जग निर्भय होते तसेच धार्मिक विद्वानांच्या संगतीने संपूर्ण राज्य निर्भर्य होते. ॥ ८ ॥