सा व॑ह॒ योक्षभि॒रवा॒तोषो॒ वरं॒ वह॑सि॒ जोष॒मनु॑। त्वं दि॑वो दुहित॒र्या ह॑ दे॒वी पू॒र्वहू॑तौ मं॒हना॑ दर्श॒ता भूः॑ ॥५॥
sā vaha yokṣabhir avātoṣo varaṁ vahasi joṣam anu | tvaṁ divo duhitar yā ha devī pūrvahūtau maṁhanā darśatā bhūḥ ||
सा। आ। व॒ह॒। या। उ॒क्षऽभिः॑। अवा॑ता। उषः॑। वर॑म्। वह॑सि। जोष॑म्। अनु॑। त्वम्। दि॒वः॒। दु॒हि॒तः॒। या। ह॒। दे॒वी। पू॒र्वऽहू॑तौ। मं॒हना॑। द॒र्श॒ता। भूः॒ ॥५॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर वे स्त्री-पुरुष कैसे वर्त्ताव वर्त्तें, इस विषय को कहते हैं ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनस्तौ स्त्रीपुरुषौ कथं वर्त्तेयातामित्याह ॥
हे दिवो दुहितरुषर्वद्वर्त्तमाने भद्रानने ! याऽवातोक्षभिर्युक्तं वरं जोषमनु त्वं वहसि सा मां पतिमा वह या ह पूर्वहूतौ मंहना दर्शता देवी त्वं भूः सा मम प्रिया भव ॥५॥