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वह॑न्ति सीमरु॒णासो॒ रुश॑न्तो॒ गावः॑ सु॒भगा॑मुर्वि॒या प्र॑था॒नाम्। अपे॑जते॒ शूरो॒ अस्ते॑व॒ शत्रू॒न्बाध॑ते॒ तमो॑ अजि॒रो न वोळ्हा॑ ॥३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

vahanti sīm aruṇāso ruśanto gāvaḥ subhagām urviyā prathānām | apejate śūro asteva śatrūn bādhate tamo ajiro na voḻhā ||

पद पाठ

वह॑न्ति। सी॒म्। अ॒रु॒णासः॑। रुश॑न्तः। गावः॑। सु॒ऽभगा॑म्। उ॒र्वि॒या। प्र॒था॒नाम्। अप॑। ई॒ज॒ते॒। शूरः॑। अस्ता॑ऽइव। शत्रू॑न्। बाध॑ते। तमः॑। अ॒जि॒रः। न। वोळ्हा॑ ॥३॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:64» मन्त्र:3 | अष्टक:5» अध्याय:1» वर्ग:5» मन्त्र:3 | मण्डल:6» अनुवाक:6» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वे कैसी हों, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे स्त्री ! तू (अजिरः) जो शीघ्र नहीं जाता उस पुरुष के (न) समान और (वोळ्हा) विवाहित स्त्री (शत्रून्) शत्रुओं को (शूरः) बल वा पराक्रम आदि योग से निर्भय (अस्तेव) शस्त्र और अस्त्रों को अच्छे प्रकार फेंकनेवाले के समान (अप, ईजते) दूर करती तथा प्रभातवेला जैसे (तमः) अन्धकार वा रात्रि को (बाधते) नष्ट-भ्रष्ट करे वा जैसे (अरुणासः) लाल काली पीली धौली आदि (रुशन्तः) पदार्थों को छिन्न-भिन्न करती हुई (गावः) किरणें सब पदार्थों को (सीम्) सब ओर से (वहन्ति) पहुँचाती हैं, वैसे (उर्विया) बहुत पुरुषार्थयुक्त हो। हे पुरुष ! उषा को जैसे सूर्य, वैसे इस (प्रथानाम्) अत्यन्त सुन्दरता से प्रख्यात भार्या को (सुभगाम्) सौभाग्य करो ॥३॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमा और वाचकलुप्तोपमालङ्कार हैं। हे मनुष्यो ! जो प्रभातवेला के समान सुप्रकाश, सुरूपवती, सूर्य किरणों के तुल्य घर के कामों की व्यवस्था का निर्वाह करनेवाली, शूरवीर के समान व्यथा अर्थात् परिश्रम की थकावट न माननेवाली स्त्रियाँ हों, उनका निरन्तर सत्कार कर सौभाग्युक्त करो ॥३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्ताः कीदृश्यो भवेयुरित्याह ॥

अन्वय:

हे स्त्रि ! त्वमजिरो न वोळ्हा सती शत्रूञ्छूरोऽस्तेवापेजत उषास्तमो बाधते यथाऽरुणासो रुशन्तो गावः सर्वान् पदार्थान् सीं वहन्ति तथोर्विया भव। हे पुरुष ! उषसः सूर्य्य इवेमां प्रथानां भार्यां सुभगां कुरु ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (वहन्ति) (सीम्) सर्वतः (अरुणासः) रक्तारुणादिगुणविशिष्टाः (रुशन्तः) हिंसन्तः (गावः) किरणाः (सुभगाम्) सौभाग्ययुक्ताम् (उर्विया) बहुपुरुषार्थयुक्ता (प्रथानाम्) विस्तीर्णसौन्दर्यप्रख्याताम् (अप) (ईजते) दूरीकरोति (शूरः) बलपराक्रमादियोगेन निर्भयः (अस्तेव) शस्त्राऽस्त्राणां प्रक्षेप्तेव (शत्रून्) (बाधते) विलोडयति (तमः) अन्धकारं रात्रिं वा (अजिरः) यः शीघ्रं न गच्छति सः (न) इव (वोळ्हा) विवाहिता ॥३॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमावाचकलुप्तोपमालङ्कारौ। हे नरा ! या उषर्वत्सुप्रकाशाः सुस्वरूपाः सूर्यकिरणवद्गृहकृत्यव्यवस्थानिर्वाहिकाः शूरवीरवद्व्यथारहिताः स्त्रियः स्युस्ताः सततं सत्कृत्य सौभाग्ययुक्ताः कुर्वन्तु ॥३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमा व वाचकलुप्तोपमालंकार आहेत. हे माणसांनो ! ज्या उषेप्रमाणे प्रकाशवान, स्वरूपवान, सूर्यकिरणांप्रमाणे गृहकृत्यांचे व्यवस्थापन करणाऱ्या, शूरवीराप्रमाणे परिश्रमी स्त्रिया असतील त्यांचा निरंतर सत्कार करून सौभाग्यवान बना. ॥ ३ ॥