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ता व॒ल्गू द॒स्रा पु॑रु॒शाक॑तमा प्र॒त्ना नव्य॑सा॒ वच॒सा वि॑वासे। या शंस॑ते स्तुव॒ते शंभ॑विष्ठा बभू॒वतु॑र्गृण॒ते चि॒त्ररा॑ती ॥५॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tā valgū dasrā puruśākatamā pratnā navyasā vacasā vivāse | yā śaṁsate stuvate śambhaviṣṭhā babhūvatur gṛṇate citrarātī ||

पद पाठ

ता। व॒ल्गू। द॒स्रा। पु॒रु॒शाक॑ऽतमा। प्र॒त्ना। नव्य॑सा। वच॑सा। आ। वि॒वा॒से॒। या। शंस॑ते। स्तु॒व॒ते। शम्ऽभ॑विष्ठा। ब॒भू॒वतुः॑। गृ॒ण॒ते। चि॒त्ररा॑ती॒ इति॑ चि॒त्रऽरा॑ती ॥५॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:62» मन्त्र:5 | अष्टक:5» अध्याय:1» वर्ग:1» मन्त्र:5 | मण्डल:6» अनुवाक:6» मन्त्र:5


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वे कैसे हैं, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जैसे मैं (या) जो (वल्गू) अत्युत्तम (दस्रा) दुःख को नष्ट करनेवाले (प्रत्ना) प्राचीन (नव्यसा) अत्यन्त नवीन (वचसा) परिभाषण करने योग्य (पुरुशाकतमा) अतीव सामर्थ्यवाले (चित्रराती) जिनसे अद्भुत दान होता वे (शंसते) प्रशंसा करनेवाले (स्तुवते) वा प्रशंसा पाये हुए वा (गृणते) सत्य उपदेश करनेवाले के लिये (शम्भविष्ठा) अतीव सुख की भावना करानेवाले (बभूवतुः) होते हैं (ता) उनकी (आ, विवासे) सेवा करता हूँ, वैसे उनकी तुम भी सेवा करो ॥५॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! जो वायु और बिजुली कारणरूप से सनातन और कार्यरूप से नूतन, बहुत शक्तिमान्, वेगादि गुणयुक्त, कल्याणकारी वर्त्तमान हैं, उनको यथावत् जानो ॥५॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तौ कीदृशावित्याह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! यथाहं या वल्गू दस्रा प्रत्ना नव्यसा वचसा पुरुशाकतमा चित्रराती शंसते स्तुवते गृणते शम्भविष्ठा बभूवतुस्ताऽऽविवासे तथैतो यूयमपि सेवध्वम् ॥५॥

पदार्थान्वयभाषाः - (ता) तौ (वल्गू) अत्युत्तमौ (दस्रा) दुःखोपक्षयितारौ (पुरुशाकतमा) अतिशयेन बहुशक्तिमन्तौ (प्रत्ना) प्राचीनौ (नव्यसा) अतिशयेन नवीनौ (वचसा) परिभाषणीयौ (आ) (विवासे) सेवे (या) यौ (शंसते) प्रशंसकाय (स्तुवते) प्रशंसिताय। अत्र कृद्बहुलमिति कर्मणि कृत् (शम्भविष्ठा) अतिशयेन सुखंभावुकौ (बभूवतुः) भवतः (गृणते) सत्योपदेशकाय (चित्रराती) चित्राऽद्भुता रातिर्दानं याभ्यां तौ ॥५॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्या ! यौ वायुविद्युतौ कारणरूपेण सनातनौ कार्यरूपेण नूतनौ बहुशक्तिमन्तौ वेगादिगुणयुक्तौ वायुविद्युतौ कल्याणकारिणौ वर्त्तेते तौ यथावद्विजानीत ॥५॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! जे वायू व विद्युत कारणरूपाने सनातन व कार्यरूपाने नूतन, अत्यंत शक्तिमान, वेग इत्यादी गुणयुक्त, कल्याणकारी आहेत त्यांना यथावत जाणा. ॥ ५ ॥