स्तु॒षे नरा॑ दि॒वो अ॒स्य प्र॒सन्ता॒ऽश्विना॑ हुवे॒ जर॑माणो अ॒र्कैः। या स॒द्य उ॒स्रा व्युषि॒ ज्मो अन्ता॒न्युयू॑षतः॒ पर्यु॒रू वरां॑सि ॥१॥
stuṣe narā divo asya prasantāśvinā huve jaramāṇo arkaiḥ | yā sadya usrā vyuṣi jmo antān yuyūṣataḥ pary urū varāṁsi ||
स्तु॒षे। नरा॑। दि॒वः। अ॒स्य। प्र॒ऽसन्ता॑। अ॒श्विना॑। हु॒वे॒। जर॑माणः। अ॒र्कैः। या। स॒द्यः। उ॒स्रा। वि॒ऽउषि॑। ज्मः। अन्ता॑न्। युयू॑षतः। परि॑। उ॒रु। वरां॑सि ॥१॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब बिजुली और अन्तरिक्ष कैसे हैं, इस विषय को कहते हैं ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अथ विद्युदन्तरिक्षे कीदृशे स्त इत्याह ॥
हे मनुष्या ! जरमाणोऽहमर्कैर्या व्युष्युस्रा प्रसन्ता नराश्विनाऽस्य दिवो ज्मोऽन्तानुरु वरांसि सद्यः परि युयूषतस्तौ स्तुषे हुवे तथैतौ स्तुत्वा यूयमपि गृह्णीत ॥१॥
माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)या सूक्तात अश्वींच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.