उ॒त स्या नः॒ सर॑स्वती घो॒रा हिर॑ण्यवर्तनिः। वृ॒त्र॒घ्नी व॑ष्टि सुष्टु॒तिम् ॥७॥
uta syā naḥ sarasvatī ghorā hiraṇyavartaniḥ | vṛtraghnī vaṣṭi suṣṭutim ||
उ॒त। स्या। नः॒। सर॑स्वती। घो॒रा। हिर॑ण्यऽवर्तनिः। वृ॒त्र॒ऽघ्नी। व॒ष्टि॒। सु॒ऽस्तु॒तिम् ॥७॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर वह कैसी है, इस विषय को कहते हैं ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनः सा कीदृशीत्याह ॥
हे मनुष्या ! या हिरण्यवर्त्तनिर्घोरा वृत्रघ्नी सरस्वती नः सुखयति स्योत नोऽस्माकं सुष्टुतिं वष्टि ॥७॥