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त्वं दे॑वि सरस्व॒त्यवा॒ वाजे॑षु वाजिनि। रदा॑ पू॒षेव॑ नः स॒निम् ॥६॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tvaṁ devi sarasvaty avā vājeṣu vājini | radā pūṣeva naḥ sanim ||

पद पाठ

त्वम्। दे॒वि॒। स॒र॒स्व॒ति॒। अव॑। वाजे॑षु। वा॒जि॒नि॒। रद॑। पू॒षाऽइ॑व। नः॒। स॒निम् ॥६॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:61» मन्त्र:6 | अष्टक:4» अध्याय:8» वर्ग:31» मन्त्र:1 | मण्डल:6» अनुवाक:5» मन्त्र:6


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वह क्या करती है, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (देवि) कामना करनेवाली (वाजिनि) प्रशस्तविज्ञानयुक्त (सरस्वति) विदुषी स्त्री ! (त्वम्) तू (नः) हमारी (सनिम्) सत्य और असत्य के विभाग करनेवाली बुद्धि को (वाजेषु) प्राप्तव्य पदार्थों में (पूषेव) भूमि के समान (अवा) पालो और (रदा) विशेषता से लिखो ॥६॥
भावार्थभाषाः - हे वरानने=सुन्दर मुखवाली ! तुम पृथिवी के समान सबका धारण करो और प्रज्ञा देओ ॥६॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः सा किं करोतीत्याह ॥

अन्वय:

हे देवि वाजिनि सरस्वति ! त्वं नः सनिं वाजेषु पूषेवावा रदा च ॥६॥

पदार्थान्वयभाषाः - (त्वम्) (देवि) कामयमाने (सरस्वति) विदुषी (अवा) अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (वाजेषु) प्राप्तव्येषु पदार्थेषु (वाजिनि) प्रशस्तविज्ञानयुक्ते (रदा) विलिख (पूषेव) भूमिरिव (नः) अस्माकम् (सनिम्) सत्याऽसत्ययोर्विभाजिकां धियम् ॥६॥
भावार्थभाषाः - हे वरानने ! त्वं पृथिवीव सर्वेषां धारणं विधेहि प्रज्ञां च देहि ॥६॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे सुंदर स्त्री ! तू पृथ्वीप्रमाणे सर्वांना धारण कर व बुद्धी दे. ॥ ६ ॥