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प्र णो॑ दे॒वी सर॑स्वती॒ वाजे॑भिर्वा॒जिनी॑वती। धी॒नाम॑वि॒त्र्य॑वतु ॥४॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

pra ṇo devī sarasvatī vājebhir vājinīvatī | dhīnām avitry avatu ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

प्र। नः॒। दे॒वी। सर॑स्वती। वाजे॑भिः। वा॒जिनी॑ऽवती। धी॒नाम्। अ॒वि॒त्री। अ॒व॒तु॒ ॥४॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:61» मन्त्र:4 | अष्टक:4» अध्याय:8» वर्ग:30» मन्त्र:4 | मण्डल:6» अनुवाक:5» मन्त्र:4


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वह कैसी रक्षा करनेवाली है, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे सन्तानो ! जो (देवी) विदुषी (वाजेभिः) अन्नादिकों के साथ (वाजिनीवती) प्रशस्तविज्ञान वा क्रिया से युक्त वा (सरस्वती) विज्ञानयुक्त वाणी से युक्त (नः) हमारी (धीनाम्) बुद्धियों को (अवित्री) रक्षा करनेवाली (प्र, अवतु) अच्छे प्रकार करे, उसको तुम स्वीकार करो ॥४॥
भावार्थभाषाः - माताजनों को चाहिये कि अपने सन्तानों को बाल्यावस्था में अच्छी शिक्षा देकर विद्या से विद्वान् कर उनके साथ अतुल सुख भोगें ॥४॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः सा कीदृशी रक्षिकेत्याह ॥

अन्वय:

हे सन्ताना ! या देवी वाजेभिर्वाजिनीवती सरस्वती नो धीनामवित्री प्रावतु तां यूयं स्वीकुरुत ॥४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (प्र) (नः) अस्माकम् (देवी) विदुषी (सरस्वती) विज्ञानयुक्तया वाचाऽऽढ्या (वाजेभिः) अन्नादिभिः (वाजिनीवती) प्रशस्तविज्ञानक्रियासहिता (धीनाम्) प्रज्ञानाम् (अवित्री) रक्षिका (अवतु) ॥४॥
भावार्थभाषाः - मातृभिः स्वसन्तानान् बाल्यावस्थायां सुशिक्ष्य विद्यया विदुषः सम्पाद्य तैः सहातुलं सुखं भोक्तव्यम् ॥४॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - मातांनी आपल्या संतानांना बालपणापासूनच चांगले शिक्षण देऊन विद्येद्वारे विद्वान करावे व त्यांच्याबरोबर अतुल सुख भोगावे. ॥ ४ ॥