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सर॑स्वति देव॒निदो॒ नि ब॑र्हय प्र॒जां विश्व॑स्य॒ बृस॑यस्य मा॒यिनः॑। उ॒त क्षि॒तिभ्यो॒ऽवनी॑रविन्दो वि॒षमे॑भ्यो अस्रवो वाजिनीवति ॥३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sarasvati devanido ni barhaya prajāṁ viśvasya bṛsayasya māyinaḥ | uta kṣitibhyo vanīr avindo viṣam ebhyo asravo vājinīvati ||

पद पाठ

सर॑स्वति। दे॒व॒ऽनिदः॑। नि। ब॒र्ह॒य॒। प्र॒ऽजाम्। विश्व॑स्य। बृस॑यस्य। मा॒यिनः॑। उ॒त। क्षि॒तिऽभ्यः॑। अ॒वनीः॑। अ॒वि॒न्दः॒। वि॒षम्। ए॒भ्यः॒। अ॒स्र॒वः॒। वा॒जि॒नी॒ऽव॒ति॒ ॥३॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:61» मन्त्र:3 | अष्टक:4» अध्याय:8» वर्ग:30» मन्त्र:3 | मण्डल:6» अनुवाक:5» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वह क्या करती है, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (वाजिनीवति) विज्ञान, क्रिया और (सरस्वती) विद्यायुक्त स्त्री ! तू (देवनिदः) जो विद्वानों की निन्दा करते हैं उनको (नि, बर्हय) निकाल (उत) और (विश्वस्य) समग्र (बृसयस्य) अविद्या छेदन करनेवाले (मायिनः) प्रशंसित बुद्धियुक्त विद्वान् की (प्रजाम्) प्रजा को (अविन्दः) प्राप्त हो तथा (क्षितिभ्यः) पृथिवियों से (अवनीः) रक्षा करनेवाली भूमियों को प्राप्त हो और (एभ्यः) इन भूमि के भीतरी देशों से (विषम्) जल को (अस्रवः) चुआओ निकालो ॥३॥
भावार्थभाषाः - वही पण्डिता स्त्री श्रेष्ठ है, जो विद्वान् और विद्या के निन्दकों को निकाल विद्या के प्रशंसकों (बड़ाई करनेवालों) का सत्कार करती है और जो भूगर्भादि विद्या जाननेवाली समस्त प्रजा को विद्याऽभिमुख करती है ॥३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः सा किं करोतीत्याह ॥

अन्वय:

हे वाजिनीवति सरस्वती ! त्वं देवनिदो नि बर्हय [उत] विश्वस्य बृसयस्य मायिनः प्रजामविन्दः क्षितिभ्योऽवनीरविन्द एभ्यो विषमस्रवः ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सरस्वति) विद्यायुक्ते स्त्रि (देवनिदः) ये देवान् विदुषो निन्दन्ति तान् (नि) नितराम् (बर्हय) निःसारय (प्रजाम्) (विश्वस्य) समग्रस्य (बृसयस्य) अविद्याछेदकस्य (मायिनः) प्रशंसितप्रज्ञस्य (उत) (क्षितिभ्यः) पृथिवीभ्यः (अवनीः) रक्षिका भूमीः (अविन्दः) प्राप्नुहि (विषम्) उदकम्। विषमित्युदकनाम। (निघं०१.१२) (एभ्यः) भूम्यन्तर्देशेभ्यः (अस्रवः) स्रावय (वाजिनीवति) विज्ञानक्रियायुक्ते ॥३॥
भावार्थभाषाः - सैव विदुषी स्त्री वरा या विदुषां विद्यायाश्च निन्दकान् दूरीकृत्य विद्याप्रशंसकान् सत्करोति या च भूगर्भादिविद्यावित्सर्वां प्रजां विद्याभिमुखां करोति ॥३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी विद्वान व विद्येच्या निंदकांना दूर करते व प्रशंसकाचा सत्कार करते व जी भूगर्भविद्या जाणणारी असून संपूर्ण प्रजेला विद्याभिमुख करते तीच पंडिता स्त्री श्रेष्ठ असते. ॥ ३ ॥