सर॑स्वति देव॒निदो॒ नि ब॑र्हय प्र॒जां विश्व॑स्य॒ बृस॑यस्य मा॒यिनः॑। उ॒त क्षि॒तिभ्यो॒ऽवनी॑रविन्दो वि॒षमे॑भ्यो अस्रवो वाजिनीवति ॥३॥
sarasvati devanido ni barhaya prajāṁ viśvasya bṛsayasya māyinaḥ | uta kṣitibhyo vanīr avindo viṣam ebhyo asravo vājinīvati ||
सर॑स्वति। दे॒व॒ऽनिदः॑। नि। ब॒र्ह॒य॒। प्र॒ऽजाम्। विश्व॑स्य। बृस॑यस्य। मा॒यिनः॑। उ॒त। क्षि॒तिऽभ्यः॑। अ॒वनीः॑। अ॒वि॒न्दः॒। वि॒षम्। ए॒भ्यः॒। अ॒स्र॒वः॒। वा॒जि॒नी॒ऽव॒ति॒ ॥३॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर वह क्या करती है, इस विषय को कहते हैं ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनः सा किं करोतीत्याह ॥
हे वाजिनीवति सरस्वती ! त्वं देवनिदो नि बर्हय [उत] विश्वस्य बृसयस्य मायिनः प्रजामविन्दः क्षितिभ्योऽवनीरविन्द एभ्यो विषमस्रवः ॥३॥