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प्र या म॑हि॒म्ना म॒हिना॑सु॒ चेकि॑ते द्यु॒म्नेभि॑र॒न्या अ॒पसा॑म॒पस्त॑मा। रथ॑इव बृह॒ती वि॒भ्वने॑ कृ॒तोप॒स्तुत्या॑ चिकि॒तुषा॒ सर॑स्वती ॥१३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

pra yā mahimnā mahināsu cekite dyumnebhir anyā apasām apastamā | ratha iva bṛhatī vibhvane kṛtopastutyā cikituṣā sarasvatī ||

पद पाठ

प्र। या। म॒हि॒म्ना। म॒हिना॑सु। चेकि॑ते। द्यु॒म्नेभिः॑। अ॒न्याः। अ॒पसा॑म्। अ॒पःऽत॑मा। रथः॑ऽइव। बृ॒ह॒ती। वि॒ऽभ्वने॑। कृ॒ता। उ॒प॒ऽस्तुत्या॑। चि॒कि॒तुषा॑। सर॑स्वती ॥१३॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:61» मन्त्र:13 | अष्टक:4» अध्याय:8» वर्ग:32» मन्त्र:3 | मण्डल:6» अनुवाक:5» मन्त्र:13


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वह कैसी है, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्या ! (या) जो (महिम्ना) बड़प्पन से (महिना) बड़ी (अपसाम्) कर्म करनेवालों में (अपस्तमा) अतीव कर्म करनेवाली और (रथइव) रमणीय आकाश के समान (बृहती) बढ़ती हुई (विभ्वने) विभुत्व के लिये (चिकितुषा) समझानेवाली (उपस्तुत्या) जिससे कि समीप स्तुति करता उससे (कृता) जगदीश्वर ने उत्पन्न की हुई (सरस्वती) जिसमें विज्ञान वर्त्तमान वह वाणी (द्युम्नेभिः) प्रकाश जो यशरूप हैं उनसे (अन्याः) प्रत्येक प्राणी के प्रति भिन्न-भिन्न है अर्थात् नाना प्रकार वाणी हैं =नाना की वाणियाँ हैं (आसु) उनमें जो (प्र, चेकिते) विज्ञान कराती उसको यथावत् जान के सत्य वाणी का अच्छे प्रकार प्रयोग करो ॥१३॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! विद्या, सुशिक्षा, सत्सङ्ग, सत्यभाषण और योगाभ्यासादिकों से निष्पन्न हुई वाणी यह व्याप्त वा समर्थ है, उसको तुम जानो ॥१३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः सा कीदृशीत्याह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! या महिम्ना महिनाऽपसामपस्तमा रथइव बृहती विभ्वने चिकितुषोपस्तुत्या कृता निष्पादिता सरस्वती द्युम्नेभिरन्या आसु प्र चेकिते तां यथावद्विज्ञाय सत्यां वाचं सम्प्रयुङ्ध्वम् ॥१३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (प्र) (या) (महिम्ना) महत्त्वेन (महिना) महती (आसु) (चेकिते) विज्ञापयतु (द्युम्नेभिः) प्रकाशनैर्यशोभिः (अन्याः) प्रतिप्राणिनं भिन्ना वाचः (अपसाम्) कर्मकर्तॄणाम् (अपस्तमा) अतिशयेन कर्मकर्त्री (रथइव) रमणीयाकाश इव (बृहती) बृंहती (विभ्वने) विभुत्वाय (कृता) जगदीश्वरेण निर्मिता (उपस्तुत्या) ययोपस्तौति तया (चिकितुषा) विज्ञापयित्र्या (सरस्वती) सरो विज्ञानं विद्यते यस्यां सा ॥१३॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्याः ! सुविद्यासुशिक्षासत्सङ्गसत्यभाषणयोगाभ्यासादिभिर्निष्पन्ना वागियं व्याप्ता वा समर्था वर्त्तते तां यूयं विजानीत ॥१३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो! चांगली विद्या, सुशिक्षण, सत्संग, सत्यभाषण व योगाभ्यास इत्यादींनी निष्पन्न झालेली वाणी समर्थ असते हे जाणा. ॥ १३ ॥