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उ॒त नः॑ प्रि॒या प्रि॒यासु॑ स॒प्तस्व॑सा॒ सुजु॑ष्टा। सर॑स्वती॒ स्तोम्या॑ भूत् ॥१०॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

uta naḥ priyā priyāsu saptasvasā sujuṣṭā | sarasvatī stomyā bhūt ||

पद पाठ

उ॒त। नः॒। प्रि॒या। प्रि॒यासु॑। स॒प्तऽस्व॑सा। सुऽजु॑ष्टा। सर॑स्वती। स्तोम्या॑। भू॒त् ॥१०॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:61» मन्त्र:10 | अष्टक:4» अध्याय:8» वर्ग:31» मन्त्र:5 | मण्डल:6» अनुवाक:5» मन्त्र:10


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वह कैसी है, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जैसे (नः) हमारी (सरस्वती) वह सरस्वती जिसको बहुत अन्तरिक्ष का सम्बन्ध है तथा (प्रियासु) सुख देनेवाली क्रिया वा स्त्रियों में (प्रिया) मनोहर (सप्तस्वसा) जिसके सात अर्थात् पाँच प्राण, मन और बुद्धि बहिन के समान वर्त्तमान तथा (सुजुष्टा) अच्छे प्रकार सेवित की हुई (उत) और (स्तोम्या) स्तुति करने योग्य (भूत्) हो, वैसे तुम्हारी भी हो ॥१०॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य सब ओर से शुद्धि करनेवाली सत्य वाणी को जानते हैं, वे ही प्रशंसा करने योग्य होते हैं ॥१०॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः सा कीदृशीत्याह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! यथा नः सरस्वती प्रियासु प्रिया सप्तस्वसा सुजुष्टोत स्तोम्या भूत्तथा युष्माकमपि भवतु ॥१०॥

पदार्थान्वयभाषाः - (उत) अपि (नः) अस्माकम् (प्रिया) कमनीया (प्रियासु) सुखप्रदासु स्त्रीषु वा (सप्तस्वसा) सप्त पञ्च प्राणा मनो बुद्धिश्च स्वसेव यस्याः सा (सुजुष्टा) सुष्ठु सेविता (सरस्वती) सरो बह्वन्तरिक्षं सम्बद्धं विद्यते यस्याः सा (स्तोम्या) स्तोतुमर्हा (भूत्) भवतु ॥१०॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्याः सर्वतः शुद्धिकरीं सत्यां वाचं जानन्ति त एव प्रशंसनीया भवन्ति ॥१०॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे सर्वस्वी पवित्र करणारी सत्य वाणी जाणतात तीच प्रशंसनीय असतात. ॥ १० ॥